नागदा | एनएमटी न्यूज़ एजेंसी |
जिनशासन के अप्रतिम प्रचारक, गच्छाधिपति राष्ट्रसंत युगप्रभावकाचार्य श्रीमद् विजय जयंतसेन सूरिश्वरजी महाराज ने अपने आध्यात्मिक जीवन में भारतभर के विभिन्न तीर्थों व नगरों में सात दशकों तक 63 चातुर्मासों का प्रभावशाली आयोजन कर शासन प्रभावना की अनुकरणीय गाथा रची।
इन चातुर्मासों में न केवल जैन धर्म का विस्तार हुआ, बल्कि हजारों श्रद्धालुओं ने धर्म, संयम, तप और साधना का साक्षात् अनुभव किया। उनका विहार और चातुर्मास यात्रा राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे अनेक प्रांतों में रहा, जिसने भारतवर्ष में अध्यात्मिक चेतना को जाग्रत किया।
चातुर्मासों की सारगर्भित सूची इस प्रकार है:
🔸 आचार्य पद से पूर्व (1954–1983):
आहोर (1954), राजगढ़ (1955, 1959, 1960), खचरोक (1956), रानापुर (1957, 1966), जावरा (1958), निम्बाहेड़ा (1961), वागरा (1962), अहमदाबाद (1963–1965), थराद (1967, 1971), भीनमाल (1968), सियाणा (1969), उज्जैन (1970), कोसिलाव (1972), जोधपुर (1973), नैनावा (1974), रिगनोद (1975), थानेरा (1976), रतलाम (1977), मुंबई (1979), मद्रास (1980), बेंगलोर (1981), विजयवाड़ा (1982), रेवतड़ा (1983)।
🔸 आचार्य पद प्राप्ति के पश्चात (1984–2016):
सियाणा (1984), नैनावा (1985), पारा (1986), खाचरोद (1987), थराद (1988, 1997, 2011), खिमेल (1989), अहमदाबाद (1990), जावरा (1991), सूरत (1992), नेल्लोर (1993), मद्रास (1994, 2009), बीजापुर (1995, 2014), कुक्षी (1998), इंदौर (2000), चोराउ (2001), नैनावा (2002), पालीताना (2003), बाग (2004), बेंगलोर (2005), मोहनखेड़ा (2006), मुंबई (2007), गंटूर (2008), विजयवाड़ा (2010), सायला (2012), बड़नगर (2013), पेपराल तीर्थ (2015), रतलाम (2016)।
इन चातुर्मासों के माध्यम से संत परंपरा, उपदेश, तपश्चर्या और तत्त्वचिंतन के साक्षात् दर्शन हुए। यह यात्राक्रम न केवल जैन अनुयायियों के लिए प्रेरणास्रोत है, बल्कि भारतीय धर्म-संस्कृति की विरासत में एक उज्ज्वल अध्याय के रूप में अमर रहेगा।
इस प्रेरणादायक यात्रा की जानकारी सलंग्नकर्ता स्वस्तिक जैन (कुक्षी) व ब्रजेश बोहरा (नागदा) द्वारा प्रदान की गई।
महावीर सन्देश – जीवनलाल जैन