पुण्य सम्राट गुरुदेव संग बिताए संस्मरणों से भावविभोर हुए राष्ट्रसंत
कोबा (गुजरात)| एनएमटी न्यूज़ एजेंसी |
धर्म, भक्ति और भावनाओं का एक विलक्षण संगम बना गुजरात के गांधीनगर जिले स्थित कोबा तीर्थ, जब पुण्य सम्राट गुरुदेव श्री विजय जयन्तसेन सूरीश्वरजी म.सा. के शिष्य मुनिराज श्री चारित्ररत्न विजयजी म.सा. एवं मुनिराज श्री अजीतसेन विजयजी म.सा. (ठाणा 2) ने तीन दिवसीय धार्मिक स्थिरता की।
इन पुण्यदायी तीन दिनों के दौरान, कोबा तीर्थ की पावन भूमि पर मुनि भगवंतों को न केवल शांत वातावरण मिला, अपितु धर्मप्रेमी संघों और संतों के साथ आत्मिक संवाद का भी दुर्लभ अवसर प्राप्त हुआ।
राष्ट्रसंतों संग आत्मीय मिलन – पुण्य सम्राट की स्मृतियों से भरा रहा वातावरण
कोबा तीर्थ में बिराजमान राष्ट्रसंत आचार्य श्री विजय पद्मसागर सूरीश्वरजी म.सा., आचार्य श्री अजयसागर सूरीश्वरजी म.सा., एवं आचार्य श्री प्रशांतसागर सूरीश्वरजी म.सा. से मुनि भगवंतों ने आत्मीय भेंट की।
इस मिलन के दौरान राष्ट्रसंतों ने पुण्य सम्राट गुरुदेव के साथ बिताए अनेक दिव्य प्रसंगों को स्मरण कर भावभीना वातावरण रच दिया।
राष्ट्रसंत पद्मसागर सूरीश्वरजी म.सा. जब गुरुदेव के संस्मरणों का उल्लेख कर रहे थे, तब बार–बार गुरुदेव के वियोग की वेदना उनके चित्त और वाणी से झलक रही थी। यह दृश्य समस्त उपस्थित जनों को भावविह्वल कर गया।
ज्ञान भंडार का अवलोकन – जैन साहित्य का अमूल्य दर्शन
तीर्थ स्थिरता के दौरान मुनिराजों ने कोबा स्थित विशाल ज्ञान भंडार का गहन अवलोकन एवं अध्ययन किया।
इस ज्ञान निधि में रखे गए लाखों हस्तलिखित ग्रंथ, प्राचीन पांडुलिपियाँ, एवं दुर्लभ प्रकाशित ग्रंथों का अध्ययन मुनियों के लिए एक आध्यात्मिक शोध यात्रा के समान रहा।
ज्ञान भंडार के व्यवस्थापकगण, पंडितवर्य और समर्पित कर्मचारीजनों ने मुनिराजों को इस बौद्धिक सम्पदा से अवगत कराने हेतु पूर्ण समय और मनोयोग से मार्गदर्शन किया।
तीर्थ स्थिरता – तप, अध्ययन और आत्मचिंतन का त्रिवेणी संगम
तीन दिनों की यह स्थिरता केवल एक विश्राम नहीं, अपितु आत्मिक ऊर्जा के संचयन, ज्ञानवर्धन, और गुरुदेव की दिव्य स्मृतियों से जुड़ने का एक भावपूर्ण अध्याय बन गई।
कोबा तीर्थ के इस पावन प्रसंग से यह साक्षात हुआ कि जब मुनि भगवंतों का संग, राष्ट्रसंतों का मार्गदर्शन, और गुरुदेव की स्मृतियाँ एकत्र होती हैं – तब वहां धर्म की दिव्य ज्योति स्वतः प्रकाशित हो उठती है।
📍 “कोबा तीर्थ – एक स्थल नहीं, अपितु जैन धर्म की जीवंत धरोहर और साधना का तपोभूमि स्वरूप है।”
– महावीर संदेश
महावीर संदेश – जीवनलाल जैन,