संस्कारों से संवर रहे हैं भविष्य के दीपक – मुरैना में जैन धर्मशिक्षा शिविर बना मिसाल

 

 मुरैना | एनएमटी न्यूज़ एजेंसी | 

आज के भौतिकवादी युग में जहां ग्रीष्मकालीन अवकाश के दौरान अधिकांश बच्चे मोबाइल और मनोरंजन में डूबे रहते हैं, वहीं मुरैना का श्री 1008 पारसनाथ दिगम्बर जैन पंचायती मंदिर एक नई चेतना का केंद्र बन गया है। यहां 25 मई से 03 जून तक चल रहे धार्मिक शिक्षण शिविर में बच्चों को न केवल प्रभु भक्ति, पूजन और अभिषेक की शिक्षा दी जा रही है, बल्कि उन्हें संस्कारों और जैन दर्शन की गहराइयों से भी परिचित कराया जा रहा है।

इस शिविर का आयोजन समाधि सम्राट आचार्य श्री 108 विद्यासागर महाराज एवं निर्यापक मुनि श्री 108 सुधासागर महाराज के पावन आशीर्वाद से हो रहा है, जिसमें मुनिश्री विलोकसागर एवं विबोधसागर महाराज का दिव्य सान्निध्य प्राप्त हो रहा है।

450 बाल शिविरार्थी ले रहे धार्मिक ज्ञान

श्री दिगम्बर जैन श्रमण संस्कृति संस्थान, सांगानेर (जयपुर) के तत्वावधान में आयोजित इस शिविर में लगभग 450 बच्चे भाग ले रहे हैं। इन नन्हें-मुन्ने बच्चों की उत्साहपूर्ण भागीदारी यह सिद्ध करती है कि धार्मिक शिक्षा का दीपक आज भी बुझा नहीं है, बस उसे सही मार्गदर्शन की लौ चाहिए।

शिक्षण के विविध विषय – ज्ञान के विविध स्रोत

शिविर में धार्मिक शिक्षा के अनेक महत्वपूर्ण ग्रंथों का गूढ़ अध्ययन कराया जा रहा है—

  • बालबोध (भाग 1) – विद्वान भैया अजय जी
  • छहढाला – आशीष जैन शास्त्री, मबई
  • भक्तामर स्तोत्र – नीरज जैन शास्त्री, भंगवा
  • द्रव्यसंग्रह – सुरेश जैन शास्त्री
  • तत्त्वार्थसूत्र – राजेन्द्र जैन शास्त्री
  • बालबोध (भाग 2) – संकल्प जैन शास्त्री

इन सभी विषयों की पढ़ाई का संयोजन पंडित आशीष जैन शास्त्री एवं नवनीत जैन शास्त्री द्वारा किया जा रहा है। वहीं, स्थानीय प्रबंधन में वीरेंद्र जैन बाबा और राजकुमार जैन वरैया सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।

जय जिनेंद्र बन गया बच्चों का नया अभिवादन

इस शिविर की एक खास बात यह है कि बच्चे अब ‘नमस्ते’ या ‘गुड मॉर्निंग’ नहीं कहते, बल्कि आपस में “जय जिनेंद्र” बोलते हैं – यह एक ऐसा अभिवादन है जो आत्मविजयी भगवान जिनेंद्र को नमन करता है। शिविर में बच्चों को शिष्टाचार, श्रद्धा, और साधना के नए मायने सिखाए जा रहे हैं।

जैन सिद्धांत + वैज्ञानिक दृष्टिकोण

शिविर में विद्वान न केवल धर्मशास्त्रों का पाठ करा रहे हैं, बल्कि उन्हें विज्ञान सम्मत ढंग से भी समझा रहे हैं। बच्चों को प्रतिदिन देवदर्शन, शुद्ध भोजन व छाना हुआ जल पीने की प्रेरणा दी जा रही है। यह संयोजन उनके जीवन में वैज्ञानिक सोच और आध्यात्मिक संतुलन लाने की दिशा में सार्थक कदम है।

“आ से आम नहीं, आदिनाथ” – शिक्षा का नया प्रारूप

जहां पारंपरिक स्कूलों में ‘आ’ से आम और ‘म’ से मछली पढ़ाई जाती है, वहीं इस शिविर में बच्चों को ‘आ’ से आदिनाथ और ‘म’ से महावीर सिखाया जा रहा है। सरल भाषा में उन्हें यह भी सिखाया जा रहा है कि मंदिर क्या है, मंदिर जाना क्यों जरूरी है, और आध्यात्मिक जीवन से क्या लाभ हो सकते हैं।

समाज के श्रेष्ठियों द्वारा सेवा का भाव

सुबह 7:00 बजे से 10:30 बजे तक एवं शाम 5:00 बजे से 8:00 बजे तक दो सत्रों में चल रहे इस शिविर में स्वल्पाहार एवं शीतल पेय की सेवा स्थानीय समाज के श्रेष्ठ बंधुओं द्वारा की जा रही है, जो सेवा के सच्चे अर्थ को जीवंत करती है।


संस्कार, समर्पण और सेवा के त्रिवेणी संगम से सजे इस शिविर ने यह सिद्ध कर दिया है कि अगर सही दिशा मिले तो अगली पीढ़ी संस्कारवान, समझदार और धर्मनिष्ठ बन सकती है। मुरैना की यह पहल निश्चित ही अन्य शहरों के लिए एक प्रेरणास्त्रोत बनेगी।

जय जिनेंद्र!

महावीर संदेश | रिपोर्टर: मनोज जैन ‘नायक’ |

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