दुर्घटनाओं से बचाना होगा श्रमण संस्कृति की अनमोल धरोहर
पाली, राजस्थान। एनएमटी न्यूज़ एजेंसी |
सुबह की पहली किरण के साथ एक और हृदयविदारक समाचार— जाड़न (पाली) में बुधवार सुबह 6:30 बजे विहार करते हुए पूज्य आचार्य पूंडरिक रत्न सूरीश्वरजी म.सा. एक ट्रक की चपेट में आकर देवलोकगामी हो गए।
जिनशासन में आस्था रखने वालों के लिए यह केवल एक “मौत” नहीं, बल्कि संयम संस्कृति की पराजय का क्षण है। यह कोई पहली या आखिरी बार नहीं हुआ, बल्कि यह कई वर्षों से चल रही एक पीड़ा की पुनरावृत्ति है।
🙏 संत-साध्वी: हमारी श्रमण परंपरा की जीवित थाती
जिनशासन के ये तपस्वी, जिनके जीवन का हर क्षण तप, त्याग और तपस्या से भरा होता है— उनकी रक्षा करना क्या केवल एक श्रद्धालु की जिम्मेदारी है? नहीं! यह हम सभी का धर्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक दायित्व है।
हर बार जब कोई संत-साध्वी सड़क दुर्घटना में देवलोकगमन करता है, तब हम गुणानुवाद सभाएं करते हैं, भावांजलि अर्पित करते हैं, संकल्प लेते हैं, लेकिन क्या वास्तव में हमने कुछ सीखा है?
⚠️ यह केवल दुर्घटना है, या कुछ और?
कई बार यह चर्चा होती है कि क्या ऐसी घटनाएं मात्र संयोग हैं, या इनकी पृष्ठभूमि में कोई साज़िश भी होती है? हालांकि अभी तक कोई ठोस प्रमाण नहीं मिले हैं, लेकिन यह विषय गंभीर मंथन का है। समाज के प्रबुद्धजनों को इस ओर सजगता से ध्यान देना चाहिए।
🌅 सूर्योदय से पहले का विहार: एक चिंतनीय परिपाटी
कई दुर्घटनाएं सुबह सूरज निकलने से पहले हुई हैं। यह प्रश्न उठता है कि —
➡️ क्या हमें यह सुनिश्चित नहीं करना चाहिए कि संत-साध्वी सूर्योदय से पूर्व विहार न करें?
➡️ क्या उन्हें तेज रफ्तार राजमार्गों से दूर रखने के प्रयास नहीं होने चाहिए?
विहार तो तप है, सेवा है — लेकिन अंधकार में विहार, स्वयं जीवन के प्रति एक लापरवाही है। यह संकल्प संत समाज और श्रावक समाज दोनों को मिलकर लेना होगा।
🚔 क्या संत-साध्वी भी VIP सुरक्षा के अधिकारी नहीं?
जिस तरह राजनेताओं को एस्कॉर्ट सुरक्षा दी जाती है, क्या जिनशासन के दूतों को वैसी ही सुरक्षा व्यवस्था नहीं मिलनी चाहिए?
➡️ जब तक अगले शहर/संघ के प्रतिनिधि संत-साध्वीजी को रिसीव करने न आ जाएं,
➡️ तब तक वर्तमान सेवा-संघ को विहार न छोड़ने का दृढ़ संकल्प लेना चाहिए।
🙌 विहार सेवा: पुण्य या औपचारिकता?
अक्सर विहार सेवा का अर्थ हम केवल यह समझ लेते हैं कि “हमने उन्हें गांव की सीमा तक पहुंचा दिया।”
लेकिन यह सेवा की अधूरी परिभाषा है।
सेवा तब पूर्ण होती है, जब हम उनकी सुरक्षा की पूर्ण गारंटी सुनिश्चित करें।
🚨 अब समय है — चेतने का, ठोस व्यवस्था बनाने का!
श्रावक-श्राविका, संघ-समिति, प्रशासन, और समाज— सभी को अब इस ओर मिलकर ठोस योजना बनानी होगी:
🔹 प्रत्येक विहार यात्रा के लिए मार्ग निर्धारण
🔹 सुरक्षा एस्कॉर्ट वाहन की अनिवार्यता
🔹 सूर्योदय से पूर्व विहार निषेध की स्पष्ट नीति
🔹 हर संघ की जिम्मेदारी तय हो — रिसीव और भेजने में निरंतरता रहे
🔹 राजमार्गों से बचाकर विकेंद्रित मार्गों से विहार की योजना
🌟 समझें — एक संत का जीवन कितना दुर्लभ है
एक मुमुक्षु के तप, त्याग और संयम से तपकर बना यह संयममूर्ति का जीवन — केवल उनका नहीं होता, वह पूरे समाज की सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और नैतिक पूंजी होता है।
जब एक संत-साध्वी दुर्घटना में जाता है, तो हम केवल एक व्यक्ति नहीं, एक संघ, परंपरा और संस्कृति का हिस्सा खो देते हैं।
✨ अब बस! अब कोई संत-साध्वी दुर्घटना में न जाए।
अब हमारी सामूहिक चेतना जागे।
अब हम केवल श्रद्धांजलि न दें — सुरक्षा दें, संरक्षण दें।
जय महावीर!
जय श्रमण संस्कृति!
✍🏻 बात मन की – निलेश कांठेड़
(स्वतंत्र पत्रकार एवं विश्लेषक, पूर्व चीफ रिपोर्टर, राजस्थान पत्रिका, भीलवाड़ा)