क्षपक चितानंद जी (ब्र. राजेंद्र दनगसिया) सल्लेखना समाधि के साथ पंचतत्व में लीन

 

जबलपुर।।  एनएमटी न्यूज़ एजेंसी | 
जैन समाज के तपस्वी साधक क्षपक चितानंद जी (पूर्व नाम ब्रह्मचारी राजेंद्र कुमार जैन दनगसिया, अजमेर) ने सल्लेखना व्रत की गहन साधना के आठवें दिन आचार्यश्री 108 समयसागर महाराज के ससंघ सान्निध्य में 03:45 दोपहर के समय नमोकार मंत्र का जाप करते हुए पूर्ण चेतना के साथ उत्कृष्ट समाधि मरण को प्राप्त किया। वे अब पंचतत्व में विलीन हो गए हैं।

यह दिव्य समाधि मरण जबलपुर में पूज्य गुरुदेव आचार्यश्री समयसागर महाराज, निर्यापक मुनिश्री संभवसागर महाराज तथा समस्त मुनिसंघ की उपस्थिति में सम्पन्न हुआ। गुरुदेव के सतत सान्निध्य, उपदेश एवं मार्गदर्शन में क्षपक चितानंद जी ने अपने जीवन के अंतिम क्षणों तक संयम, तप और श्रद्धा की पराकाष्ठा प्रस्तुत की।


45 वर्षों से संयममय जीवन, 1987 में लिया ब्रह्मचर्य व्रत

अखिल भारतीय जैसवाल जैन सेवा न्यास के मीडिया प्रभारी श्री मनोज जैन ‘नायक’ (मुरैना) ने जानकारी दी कि ब्रह्मचारी श्री राजेंद्र जैन ने 1987 में ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया। उन्होंने 1999 में आचार्यश्री विद्यासागर महाराज से सात प्रतिमा तथा 2013 में दस प्रतिमा व्रत लिया।

उनकी तपश्चर्या में –

  • 2011 से संध्याकालीन जल का त्याग,
  • जीवन पर्यंत चीनी का पूर्ण त्याग,
  • 2013 से नमक का भी संपूर्ण त्याग उल्लेखनीय है।

उनका जीवन सच्चे अर्थों में संयम, वैराग्य और जैन धर्म के मूल सिद्धांतों के अनुपालन का जीता-जागता उदाहरण था।


गृहस्थ जीवन में रहकर भी किया संयम का पालन

संयम के पथिक श्री राजेंद्र जैन ने परिवार के मध्य रहकर भी एक तपस्वी ब्रह्मचारी के रूप में संयम और वैराग्य का जीवन जिया। वे आचार्यश्री विद्यासागर महाराज को भगवद् स्वरूप मानते थे और उन्हीं की प्रेरणा से उन्होंने आध्यात्मिक साधना का मार्ग अपनाया।


सल्लेखना की साधना और अंतिम व्रत

जबलपुर में विराजमान पूज्य आचार्यश्री समयसागर महाराज को श्रीफल अर्पित कर उन्होंने सल्लेखना व्रत का निवेदन किया। गुरुदेव ने उनकी भावना और तपशक्ति को देखते हुए गृहत्याग, दस प्रतिमा व्रत एवं “क्षपक चितानंद” नाम प्रदान कर सल्लेखना की स्वीकृति दी। इसके उपरांत उन्होंने सभी प्रकार के आहार का त्याग करते हुए आत्म साधना में लीन हो गए।


परिवार भी बना संयम-मार्ग में सहभागी

उनके पुत्र अजय जैन दनगसिया, विजय जैन, बहुएँ साधना जैन एवं सविता जैन सहित समस्त परिवार पूरी श्रद्धा से ब्रह्मचारी श्री की वैयावृत्ति (सेवा) में पूर्णतः संलग्न रहे। यह पारिवारिक एकजुटता, श्रद्धा एवं सेवा-भाव पूरे जैन समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत है।


स्मरणीय है तप, साधना और समाधि का यह संगम

क्षपक चितानंद जी की सल्लेखना की यह यात्रा एक ऐसे साधक की कथा है, जिन्होंने 45 वर्षों तक संयम और साधना के पथ पर चलकर अंततः उत्कृष्ट समाधि मरण को प्राप्त किया। यह न केवल एक धार्मिक उपलब्धि है, बल्कि आध्यात्मिक चेतना की परम ऊंचाई भी है।


🙏 नमन है ऐसे महामानव को, जिनके जीवन ने धर्म, संयम, त्याग और तप का यथार्थ अर्थ समाज के समक्ष प्रस्तुत किया।
🕉️ नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु…


– महावीर संदेश | विशेष संवाददाता: मनोज जैन ‘नायक’, मुरैना/जबलपुर

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