“जिसके पास मन नहीं, उससे कुछ भी कहना नहीं” — मुनिश्री विलोकसागर महाराज

शिक्षण शिविरों का समापन समारोह आज, 450 से अधिक शिविरार्थी हुए लाभान्वित
मुरैना | ।  एनएमटी न्यूज़ एजेंसी | 

बड़े जैन मंदिर, मुरैना में आयोजित ग्रीष्मकालीन संस्कार शिक्षण शिविर के दौरान दिगंबर जैन मुनिराज श्री विलोकसागर महाराज ने अपने प्रवचनों में जीवन का गूढ़ सत्य सरल और मार्मिक शब्दों में व्यक्त करते हुए कहा—
“उपदेश उसी को देना चाहिए जो उसे ग्रहण करने की क्षमता रखता हो। जिसके पास ‘मन’ नहीं है, उसे कुछ भी कहना व्यर्थ है।”

उन्होंने समझाया कि जैसे पत्थर को पूजा तो जा सकता है, पर समझाया नहीं जा सकता, उसी तरह जो व्यक्ति मन और विवेक से रहित है, उसे उपदेश देना अर्थहीन है। मन ही वह माध्यम है जो इंसान को अच्छे-बुरे का बोध कराता है, शोध की प्रेरणा देता है और जीवन में परिवर्तन लाता है।

“जिसके पास मन है, वही प्रगति की ओर अग्रसर हो सकता है। जब तक मन से प्रकृति को नहीं समझोगे, तब तक प्रगति नहीं हो सकती,” — मुनिश्री ने शिविर में उपस्थित शिविरार्थियों को संबोधित करते हुए कहा।


संस्कार शिविरों का आज होगा समापन समारोह

25 मई से 3 जून तक आयोजित इस ग्रीष्मकालीन संस्कार शिक्षण शिविर का आयोजन श्रमण संस्कृति संस्थान, सांगानेर (जयपुर) के विद्वानों द्वारा मुनिश्री विलोकसागर एवं विबोधसागर महाराज के पावन सान्निध्य तथा मुनिपुंगव सुधासागर महाराज के आशीर्वाद से हुआ।

नगर के बड़े जैन मंदिर में संचालित इस शिविर में लगभग 450 शिविरार्थियों ने उत्साह और श्रद्धा के साथ भाग लिया। 2 जून को सभी प्रतिभागियों की लिखित परीक्षा संपन्न हुई।

आज, 3 जून को प्रातः 8 बजे सभी प्रतिभागियों के परीक्षा परिणाम घोषित किए जाएंगे, साथ ही उन्हें प्रशस्ति पत्र और पुरस्कार प्रदान किए जाएंगे। सांगानेर से पधारे विद्वानों का विशेष सम्मान समारोह भी आयोजित किया जाएगा।


मन ही जीवन का सार है

मुनिश्री विलोकसागर ने कहा,
“तुम्हारा सबसे बड़ा मित्र और सबसे बड़ा शत्रु — तुम्हारा ‘मन’ ही है।”
यदि मन पवित्र होगा, तो विचार भी शुभ होंगे और जीवन शांतिमय होगा। यदि मन दूषित है, तो चारों ओर अशांति ही दिखाई देगी—even प्रभु के समीप बैठा व्यक्ति प्रभु को नहीं देख पाएगा।

उन्होंने सभी को प्रतिपल मन के विचारों को पढ़ने, बुरे विचारों को रोकने और अच्छे विचारों को अपनाने का आग्रह किया। यही अभ्यास जीवन को काँटों में भी मुस्कराने योग्य बना देता है।


सुखमय जीवन के लिए छह सूत्र

मुनिश्री ने पारिवारिक और सामाजिक जीवन को सुखमय बनाने के लिए छः विशेष सूत्रों को जीवन में अपनाने की प्रेरणा दी:

  1. अहंकार का त्याग करें
  2. ‘ममकार’ (अति स्वत्व भावना) को भूलें
  3. आशक्ति को शून्य करें
  4. अधिकार की भावना को त्यागें
  5. कर्तव्य का मोह त्यागें
  6. अलंकार (दिखावा) से दूर रहें

उन्होंने कहा, “यदि आप इन छह सूत्रों को अपने जीवन में उतार लेंगे, तो न केवल आपका जीवन सुखमय होगा बल्कि आपका पूरा परिवार भी शांति और प्रेम से परिपूर्ण रहेगा।”


मनोज जैन ‘नायक’

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