📍 खतौली।। एनएमटी न्यूज़ एजेंसी |
धर्मनगरी खतौली में चातुर्मासार्थ विराजमान भावलिंगी संत श्रमणाचार्य श्री 108 विमर्शसागर जी महामुनिराज के दिव्य सान्निध्य में चल रही धर्मधारा से नगर आध्यात्मिक ऊर्जा से सराबोर हो रहा है। चतुर्विध संघ के अधिनायक, संघ शिरोमणि आचार्यश्री ने प्रातःकालीन धर्मसभा में सैकड़ों श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा—
“भगवान वीतरागी होते हैं। जो राग, द्वेष, मोह, क्षुधा, पिपासा जैसे 18 दोषों से रहित नहीं, वह भगवान नहीं — वह तो केवल मेहमान है।”
🔹 “जीवन है पानी की बूंद” — गूंजा आध्यात्मिक संदेश
आचार्यश्री ने अपने मौलिक महाकाव्य “जीवन है पानी की बूंद” के माध्यम से चेतना के अमृत को श्रद्धालुओं के हृदय में प्रवाहित किया। उन्होंने कहा कि जैसे यह जीवन पानी की एक बूंद है, वैसे ही चेतन जीव की सत्ता भी क्षणभंगुर है। जो आत्मा अपने स्वरूप को पहचान ले, वही सच्चे भगवान की आराधना कर सकता है।
🔸 चेतना और जड़ में अंतर को समझना आवश्यक
उन्होंने कहा कि —
“इन आँखों से दिखाई देते हैं केवल जड़ पदार्थ, जबकि चेतन आत्मा का ज्ञान अनुभूति से होता है। जिसकी बुद्धि बाह्य वस्तुओं की चमक में लिप्त है, वही जड़बुद्धि कहलाती है। भगवान वह है जो चेतन है, सर्वज्ञ है और हितोपदेशी है।”
🔸 भगवान की सच्ची पहचान गुणों से होनी चाहिए
सभा को संबोधित करते हुए आचार्यश्री ने यह भी कहा कि —
“जैसे आप अपने बच्चों के लिए उत्तम शिक्षा व्यवस्था खोजते हैं, वैसे ही भगवान की पहचान करने के लिए भी विवेक चाहिए। केवल नाम लेने मात्र से कोई भगवान नहीं होता। भगवान के तीन लक्षण — वीतरागता, सर्वज्ञता और हितोपदेशिता — जिनमें हों, वही भगवान कहलाने योग्य हैं।”
🔸 खतौली में आध्यात्मिक जागरण का वातावरण
आचार्य संघ के नगर आगमन से खतौली समाज में अद्भुत उत्साह और धर्मानुराग की लहर देखी जा रही है। प्रतिदिन प्रभात में धर्मसभा, जिज्ञासा समाधान एवं आराधना में नगरजन बड़ी संख्या में भाग ले रहे हैं।
🖋️ सोनल जैन की रिपोर्ट