🕉️ परम पूज्य मुनि वैराग्य सागर जी एवं सुप्रभ सागर जी को चातुर्मास हेतु श्रद्धापूर्वक श्रीफल अर्पित

📍 कोटा।।  एनएमटी न्यूज़ एजेंसी |  आर.के.पुरम स्थित शनिअनिष्ट निवारक मुनिसुव्रतनाथ दिगंबर जैन त्रिकाल चौबीसी मंदिर में परम पूज्य मुनि श्री वैराग्य सागर जी महाराज एवं मुनि श्री सुप्रभ सागर जी महाराज की सन्निधि में विभिन्न उपनगरों व जिलों से पधारे श्रद्धालुओं ने चातुर्मास हेतु श्रीफल अर्पित कर धर्मलाभ प्राप्त किया।

🙏 मंदिर समिति के अध्यक्ष अंकित जैन, महामंत्री अनुज जैन एवं कोषाध्यक्ष ज्ञानचंद जैन ने बताया कि द्वय मुनि श्री का मंगल प्रवास वर्तमान में आर.के.पुरम जैन मंदिर में चल रहा है। इसी क्रम में मंदिर समिति के पदाधिकारियों सहित सकल जैन समाज के सदस्यों ने मुनि श्री के चरणों में चातुर्मास हेतु श्रीफल अर्पित किया।

🌸 इस पावन अवसर पर सकल जैन समाज कोटा के अध्यक्ष प्रकाश बज, महामंत्री पदम बड़ला, विमल जैन, जे.के. जैन, मनोज जयसवाल, राजेश खटोड़, पंकज जैन, पदम जैन, लोकेश बरमूड़ा, सागर चंद जैन सहित समाज के अनेक गणमान्य जन उपस्थित रहे।

🗣️ राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी एवं मंदिर समिति के प्रचार-प्रसार मंत्री पारस जैन “पार्श्वमणि” ने बताया कि जवाहर नगर, लाडपुरा, रामपुरा सहित आसपास के क्षेत्रों से श्रद्धालुओं ने मुनि श्री को चातुर्मास हेतु श्रीफल भेंट किया। साथ ही देवपुरा (बूंदी) से भी जैन समाज के श्रद्धालुओं ने भक्ति भाव से श्रीफल अर्पित किया।

🕊️ मंदिर समिति के कार्याध्यक्ष प्रकाश जैन ने जानकारी दी कि प्रातः काल द्वय मुनि श्री के पावन सान्निध्य में विश्वशांति की कामना से “महा शांतिधारा” सम्पन्न की गई।

📜 धर्मसभा को संबोधित करते हुए मुनि श्री वैराग्य सागर जी महाराज ने कहा—

“वर्तमान युग की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि माता-पिता अपने बच्चों को उच्च शिक्षा तो दिलाते हैं, लेकिन धार्मिक शिक्षा और सद्संस्कारों की ओर ध्यान नहीं देते। बचपन में दिए गए संस्कार जीवन की ढलान तक साथ निभाते हैं। यदि बच्चों को महापुरुषों का जीवन पढ़ने की प्रेरणा दी जाए, तो वे अपने लक्ष्य से कभी नहीं भटकेंगे।”

📖 इसके पश्चात मुनि श्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा—

“भारतीय संस्कृति में चित्र की नहीं, चरित्र की पूजा होती है। साधनों की नहीं, साधना की आराधना की जाती है। संतों की संगति अत्यंत पुण्य का परिणाम होती है। जिस नगर का पुण्य बल प्रबल होता है, वहीं संतों का चातुर्मास संभव होता है। संत के सान्निध्य में मनुष्य भले ही संत न बन पाए, परंतु संतोषी अवश्य बन जाता है।

🔖 समस्त आयोजन में श्रद्धालुजनों ने भावपूर्ण सहभागिता कर धर्म और संयम की वाणी का रसास्वादन किया। कोटा का यह चातुर्मास अवसर सम्पूर्ण समाज के लिए आत्मकल्याण का अनुपम अवसर बनता जा रहा है।


✍️ पारस जैन “पार्श्वमणि”, कोटा | 

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