“विनाश मानव पर छाता है, तब विवेक स्वयं मर जाता है” — मुनिश्री विलोकसागर जी महाराज

 

✍️ महावीर संदेश – मनोज जैन नायक, मुरैना।

बड़े जैन मंदिर, मुरैना में आयोजित धर्मसभा में जैन संत मुनिश्री विलोकसागर जी महाराज ने जीवन के गूढ़ रहस्यों और कर्म सिद्धांत की व्याख्या करते हुए कहा—

“इस असार संसार में प्रत्येक जीव अपने पाप-पुण्य के अनुसार ही सुख और दुख का अनुभव करता है। जब पुण्य का उदय होता है, तब मिट्टी भी सोना बन जाती है, लेकिन जब पाप कर्म प्रबल होते हैं, तब सोना भी मिट्टी बन जाता है।”

मुनिश्री ने धर्मसभा में उपस्थित श्रद्धालुओं से कहा कि—

“विनाश जब मानव पर छाता है, तब विवेक स्वयं मर जाता है। व्यक्ति हित-अहित, सही-गलत और अपने-पराए का भेद भूल जाता है। कषाय के आवेग में उसकी बुद्धि नष्ट हो जाती है और वह ज्ञानी होते हुए भी अज्ञानी की तरह आचरण करने लगता है।”

🔶 कर्म सिद्धांत की व्याख्या

मुनिश्री ने कर्मों की लीला को समझाते हुए रावण का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि—

“रावण त्रैलोक्य विजेता, प्रकांड विद्वान और तीनों लोकों का सम्राट था, लेकिन जब पाप कर्म का उदय हुआ, तब उसने सीता का हरण किया और अंततः अपने विनाश को निमंत्रण दे बैठा।”

“कर्मों की यह विचित्र लीला राजा को रंक और रंक को राजा बना सकती है।”

मुनिश्री ने सभी को पुण्य संचय की प्रेरणा देते हुए कहा कि—

“मनुष्य पर्याय, धर्म, धन, बुद्धि, साधु-संतों का सान्निध्य — ये सभी पूर्व जन्मों के पुण्य से ही प्राप्त होते हैं। इन्हें पहचान कर धार्मिक कार्यों में उपयोग करना ही हमारा कर्तव्य है।”

🔶 पुण्य का सदुपयोग करें

मुनिश्री ने कहा कि—

“चंचला लक्ष्मी को यदि परोपकार, जीवदया, जप-तप, पूजन-अर्चन में लगाएं, तो वह अनंत गुणित होकर पुण्य में परिणत हो जाती है। जीवन क्षणभंगुर है, अंतिम क्षण कब आ जाए कोई नहीं जानता, इसलिए सदैव धर्म में रत रहकर आत्मकल्याण का मार्ग अपनाना चाहिए।”

🔶 अहंकार से टूटता है जीवन

अपने प्रवचन के अंत में मुनिश्री ने नम्रता और अहंकार पर भी प्रकाश डालते हुए कहा—

“व्यक्ति नम्रता से जुड़ता है और अहंकार से टूटता है। अहंकार जीवन की शांति, सुख और संबंधों को छीन लेता है।”
“दूसरों की अच्छाई को याद रखना और दोष देखने से पहले स्वयं को देखना ही सच्ची आत्म साधना है।”

उन्होंने आह्वान किया कि—

“हे भव्य आत्माओं! अहंकार का त्याग करो, नम्रता अपनाओ और प्रभु का स्मरण करते हुए परोपकार, जीवदया और मानव सेवा में लीन रहो। यही जीवन का सच्चा उद्देश्य है।”


निष्कर्ष:
मुनिश्री विलोकसागर जी के प्रेरणादायक प्रवचन ने धर्मसभा में उपस्थित जनसमूह को आत्मचिंतन, आत्मपरिष्कार और धर्ममय जीवन की ओर उन्मुख कर दिया। उनके विचार आज के सामाजिक परिप्रेक्ष्य में उत्कृष्ट मार्गदर्शन बनकर उभरे।


 

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