धर्मनगरी राणापुर में मुनि श्री सुमंत्रसागर जी का भव्य मंगल प्रवेश

 

✍️ महावीर संदेश – सुरेश समीर, राणापुर।

लगभग दो युगों के बाद धर्ममय राणापुर नगरी को एक बार फिर से चातुर्मास का अद्भुत सौभाग्य प्राप्त हुआ। दिगंबर जैन समाज के चतुर्थ पट्टधर आचार्य श्री सुनीलसागर जी महाराज के परम शिष्य मुनिश्री सुमंत्रसागर जी महाराज का भव्य मंगल प्रवेश नगर में धार्मिक उल्लास के साथ सम्पन्न हुआ।

🔶 धर्मसभा में मुनिश्री का प्रेरक उद्बोधन

अग्रवाल भवन में आयोजित धर्मसभा को संबोधित करते हुए मुनिश्री सुमंत्रसागर जी ने कहा—

“बुरे या अशुभ कर्म करने वाला व्यक्ति भले ही धनवान हो, परंतु उस पर परमात्मा की कृपा नहीं होती। लेकिन जो धनाभाव में भी अच्छे कर्म करता है, परोपकार में लीन रहता है, तप-जप में रत रहता है, उसके साथ भगवान स्वयं होते हैं और साक्षात दर्शन भी देते हैं।”

मुनिश्री ने वर्षायोग की इस तप आराधना के विशेष महत्व को बताते हुए श्रावक-श्राविकाओं से शक्ति अनुसार तपस्या में भाग लेने का आव्हान भी किया।

🔶 नगर हुआ धर्ममय, हुआ भव्य स्वागत

प्रातःकाल से ही नगर की गलियों में जैन ध्वज युक्त वाहन, श्वेत वस्त्रधारी पुरुष और लाल परिधान में सुसज्जित महिलाएँ ध्वज और मंगल कलश के साथ मुनिश्री की भव्य आगवानी में उमड़ पड़ीं।
झाबुआ मार्ग से नगर प्रवेश करते समय अग्रवाल दिगंबर जैन समाज के अध्यक्ष पवन एम. अग्रवाल के नेतृत्व में वरिष्ठजनों एवं चातुर्मास समिति के पदाधिकारियों ने श्रीफल अर्पण कर मुनिश्री का स्वागत किया।

बैंड-बाजों की मधुर स्वर लहरियाँ, ढोल की थाप और जय जयकार के उद्घोषों से वातावरण गूंजायमान रहा। मुनिश्री के नगर भ्रमण के दौरान प्रत्येक घर पर अक्षत-श्रीफल अर्पित कर गहुली की परंपरा निभाई गई।

🔶 नगर जुलूस और धर्मसभा

धार्मिक उल्लास से परिपूर्ण यह भव्य शोभायात्रा नगर के विभिन्न मार्गों से होकर अग्रवाल भवन पहुँची, जहाँ यह धर्मसभा में परिवर्तित हुई।
शोभायात्रा में सबसे आगे दो अश्व थे, जिन पर जैन धर्म की पताकाएँ लहरा रही थीं। नगर परिषद के पार्षदों और अध्यक्ष ने भी मुनिश्री से आशीर्वाद प्राप्त किया।

🔶 2 जुलाई को मनाया जाएगा जन्मोत्सव

2 जुलाई को मुनिश्री का 33वां जन्मोत्सव धार्मिक भव्यता के साथ मनाया जाएगा। इसी दिन चातुर्मास स्थापना का शुभ कार्य भी होगा, जिसमें मंगल कलश की स्थापना की जाएगी।

🔶 98 दिवसीय वृहद तप आराधना

इस चातुर्मास में मुनिश्री 98 दिवसीय वृहद मृदंगमध्य व्रत तप करेंगे, जिसमें केवल 17 दिन आहारचर्या होगी और शेष 81 दिन उपवास रहेंगे। यह अद्वितीय तप आराधना समाज के लिए अद्भुत प्रेरणा स्रोत बनेगी।


निष्कर्ष:
मुनि श्री सुमंत्रसागर जी महाराज का यह चातुर्मास न केवल राणापुर नगर के लिए सौभाग्य है, बल्कि सम्पूर्ण जैन समाज के लिए धर्म, तप, त्याग और संयम की अमूल्य प्रेरणा है। समाजजन इस दुर्लभ अवसर का अधिक से अधिक लाभ लें और आराधना में सहभागी बनें।


 

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