जैनाचार्य विद्यासागर साक्षात् भगवन स्वरूप थे – मुनिश्री विलोकसागर

नसियांजी जैन मंदिर में श्रद्धा, भक्ति व गौरव के साथ मनाया गया 58वां दीक्षा दिवस

मुरैना।
जिनशासन के अमर दीप, तपस्वियों के अग्रदूत और संयम के पर्याय आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज के 58वें दीक्षा दिवस के पावन अवसर पर नसियांजी जैन मंदिर में आयोजित समारोह श्रद्धा, भक्ति और भव्यता का अनुपम संगम बना। इस अवसर पर मुनिश्री विलोकसागर महाराज ने श्रद्धांजलि स्वरूप कहा, “आचार्य विद्यासागरजी महाराज केवल संत नहीं, वे साक्षात् भगवान स्वरूप थे, जिन्होंने विलुप्त होती श्रमण परंपरा को पुनः जीवित किया।”

उन्होंने कहा कि “पूज्य गुरुदेव का जीवन चरित्र स्वयं में एक ग्रंथ है, जो किसी के भी जीवन को बदलने की क्षमता रखता है।” संयम, तप, शील और ज्ञान के आदर्श उदाहरण के रूप में आचार्यश्री सदैव समाज के लिए प्रेरणा के स्त्रोत रहेंगे।

भव्य आयोजन में उमड़ा श्रद्धालुओं का सैलाब

प्रातःकालीन बेला में श्री जिनेंद्र प्रभु का अभिषेक, शांतिधारा और पूजन के साथ आयोजन का शुभारंभ हुआ। चित्र अनावरण एवं दीप प्रज्वलन श्री राजेन्द्र भंडारी, रमाशंकर जैन, महावीर जैन, सुरेशचंद जैन द्वारा किया गया। मंचासीन युगल मुनिराजों का पाद प्रक्षालन एवं शास्त्र भेंट पदमचंद गौरव जैन और प्रेमचंद पंकज जैन ने किया।
शांतिधारा का सौभाग्य राकेश कुमार आलेख जैन को प्राप्त हुआ।

गुणानुवाद सभा में हुआ आचार्यश्री के कृतित्व का स्मरण

गुणानुवाद सभा में पूज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज के जीवन, सिद्धांतों और तप पर आधारित विचार प्रस्तुत किए गए। सभा का कुशल संचालन ब्रह्मचारी अजय भैयाजी (झापन वाले), अनूप भंडारी और गौरव जैन ने किया।

विद्याधर से विद्यासागर बनने की प्रेरणादायक यात्रा

मात्र 20 वर्ष की आयु में गृह त्यागकर जयपुर पहुंचे विद्याधर, आचार्य देशभूषणजी महाराज से ब्रह्मचर्य व्रत लेकर धर्म-साधना में लीन हो गए। तत्पश्चात आचार्य ज्ञानसागरजी महाराज के चरणों में दीक्षा लेकर वे शाश्वत सत्य की अनुभूति में तपोन्मुख हो गए।
30 जून 1968, रविवार, आषाढ़ शुक्ल पंचमी को अजमेर में उन्हें दिगंबर जैन मुनि दीक्षा प्राप्त हुई। उनके जीवन का हर क्षण संयम, ज्ञान और अहिंसा की मिसाल बना।

गुरु के आशीर्वाद से बना अद्वितीय तपस्वी

चारित्र विभूषण महाकवि आचार्य ज्ञानसागरजी महाराज से दीक्षा लेकर आचार्यश्री ने गुरु समर्पण और भक्ति का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया। उनकी जीवनशैली जितनी सरल और सहज थी, तपस्या उतनी ही कठोर और वज्रवत थी।

युगों तक प्रेरणा देते रहेंगे आचार्यश्री

मुनिश्री विलोकसागर महाराज ने कहा कि “पूज्य आचार्यश्री ने न केवल हजारों युवाओं को संयम मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी, बल्कि भारतीय समाज को अहिंसा और आत्मकल्याण की दिशा भी दिखाई।” उनका तप, त्याग और संयम जीवन के हर क्षेत्र में आदर्श बने रहेंगे।

इस दिव्य अवसर पर हजारों श्रद्धालुजनों ने उपस्थित होकर पूज्य गुरुदेव को कृतज्ञता और श्रद्धांजलि अर्पित की। 58वां दीक्षा दिवस समाज के लिए संयम, सेवा और संस्कारों का स्मरणोत्सव बन गया।

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