“माझे ठाणे” ग्रंथ का भव्य विमोचन, आचार्य यशोवर्म सूरीश्वरजी की निश्रा में हुआ आयोजन

मुंबई।
जहाँ आमजन “थाना” शब्द से डरते हैं, वहीं ठाणे एक ऐसा ऐतिहासिक नगर है जिसने अपने गौरवशाली अतीत से आज तक की यात्रा को आत्मसात किया है। इसी ठाणे के अद्भुत इतिहास को संजोता हुआ ग्रंथ “माझे ठाणे” वरिष्ठ साहित्यकार श्री मदनलाल हुंडिया द्वारा रचित है, जिसका विमोचन समारोह मुंबई में प्रसिद्ध जैनाचार्य यशोवर्म सूरीश्वरजी महाराज की निश्रा में सम्पन्न हुआ।

इस अवसर पर उपस्थित वरिष्ठ समाजसेवी श्री हार्दिक हुंडिया ने कहा, “हम मारवाड़ी गुजरातियों ने महाराष्ट्र में विकास तभी किया जब हमें मराठी भाईयों का सच्चा साथ मिला। ‘माझे ठाणे’ केवल एक पुस्तक नहीं, बल्कि एक नगर का जीवित इतिहास है।”

हार्दिक हुंडिया ने बताया कि यह ग्रंथ ६ वर्षों की तपस्वी साधना और शोध का परिणाम है, जिसमें ११ लाख वर्ष पूर्व से लेकर आधुनिक काल तक के ठाणे के सांस्कृतिक, धार्मिक, ऐतिहासिक, और सामाजिक पक्षों को उजागर किया गया है। ग्रंथ में जैन-अजैन सभी ऐतिहासिक घटनाएं, पुरातत्वीय धरोहर, संत महात्माओं की तपस्थलियाँ, और ठाणे के वैभवशाली अतीत का अत्यंत रोचक शैली में वर्णन किया गया है।

ग्रंथ विमोचन के इस समारोह में निरंजन डावखरे, निखिल बरचूड़े, संदीप लेले, बाबू नानावटी, जे. के. संघवी, उदय परमार सहित समाज के अनेक प्रतिष्ठित गणमान्य जन उपस्थित रहे। कार्यक्रम का कुशल संचालन जैनम संघवी द्वारा किया गया।

जिनांगयशाश्रीजी म.सा. (डिप्पी म.सा.) की प्रेरणा से रचित यह ग्रंथ आगामी पीढ़ियों के लिए एक शोधपरक धरोहर सिद्ध होगा। मदनलाल हुंडिया ने बताया कि ग्रंथ की प्रथम प्रति प्रसिद्ध आचार्य श्री यशोवर्म सूरीश्वरजी महाराज को भेंट की गई, जिन्होंने इस पुण्य कार्य हेतु लेखक को अपना आशीर्वाद प्रदान किया।

आचार्य श्री ने कहा कि “यह वही भूमि है जहाँ आनंद दीघे जैसे धर्मनिष्ठ नेता भी मुनिसुव्रत स्वामी मंदिर में दर्शन हेतु आया करते थे।” उन्होंने “माझे ठाणे” को केवल एक ग्रंथ नहीं, बल्कि भावी पीढ़ियों के लिए दिशा देने वाला पथप्रदर्शक बताया।

गौरतलब है कि मूल रूप से राजस्थान के आहोर निवासी हुंडिया परिवार पिछले १४० वर्षों से ठाणे में स्थायी रूप से निवासरत है और समाजसेवा में निरंतर सक्रिय भूमिका निभा रहा है।

“माझे ठाणे” न केवल ठाणे नगर का गौरवगान करता है, बल्कि यह ग्रंथ कोकण क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत, श्रीपाल-मयना की कथा, अलकापुरी जैसे उल्लेखों के माध्यम से पूरे महाराष्ट्र के धार्मिक और ऐतिहासिक स्वरूप को दर्शाता है।

यह ग्रंथ निश्चित ही युगों तक समाज को प्रेरणा देता रहेगा और आने वाली पीढ़ियाँ इससे ठाणे के उज्ज्वल इतिहास को जानकर गौरवान्वित होंगी।

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