व्यक्ति विशेष पत्रकार जगत में अपनी तटस्थ लेखनी से लोकप्रिय स्टार रिपोर्ट के प्रधान संपादक हार्दिकजी हुंडिया

सकारात्मक सोच वही मूल मंत्र को जीवन में अपनाया है। विश्व के प्रथम क्रमांक के भारतीय हीरा उद्योग की तटस्थ खबरों को हीरा माणेक अखबार मैं सत्य को सम्मान और अन्याय के खिलाफ आवाज के मंत्र को जीवन के साथ जोड़कर कलम चलाई है।
भारतीय हीरा व्यापारी और रत्न कलाकारों को वैश्विक रूप से उन्हें पहचान मिले उसके लिए उन्होंने इंटरनेशनल डायमंड डे को 12 अगस्त के दिन मनोनीत करके इंटरनेशनल डायमंड डे की स्थापना की है।
गुजराती मातृभाषा मैं हीरामाणेक के साथ राष्ट्रभाषा हिंदी में स्टार में शान रिपोर्ट में जान के टाइटल स्लोगन के साथ स्टार रिपोर्ट मैगज़ीन में सकारात्मक लेखनी, महानुभावों की मुलाकात प्रकाशित होती है।
अहिंसा परमो धर्म भगवान महावीर स्वामी जी के पथ पर चलकर और अबोल जीवों की रक्षा और विश्व वंदनीय जैन धर्म के प्रचार और प्रसार हेतु ऑल इंडिया जैन जर्नलिस्ट एसोसिएशन की स्थापना करके जैन समाज को एक मंच पर लाने का एक सफल प्रयास उन्होंने किया है। उसके अलावा समाज के विभिन्न क्षेत्रों के साथ जुड़कर उन्होंने हमेशा एक सजग कलम प्रहरी बनकर धर्म की, राष्ट्र की और विश्व की सेवा करने का गौरव प्राप्त किया है। मुंबई से प्रकाशित स्टार रिपोर्ट मैगज़ीन के प्रधान संपादक हार्दिक जी हुंडिया से विशेष मुलाकात।

प्रश्न- अपने बचपन के बारे में बताएं , और आपने शिक्षा कहां से प्राप्त की?
हार्दिक हुडींया – मैं और मेरा परिवार मूल रूप से राजस्थान के जालौर शहर से है । परंतु मेरा बचपन गुजरात के डीसा शहर में बीता। जैन कुल में मेरा जन्म हुआ है। पिता श्री सोहन लाल जी हुंडियां माता बक्षुबेन दोनों परम धर्म प्रेमी और जैन धर्म के नियमों के अनुसार चलने वाले मेरे माता पिता ने बचपन से ही मुझ में पवित्र जैन धर्म के संस्कारों का सिंचन करके बड़ा किया । घर में भी पवित्र वातावरण मिला । कभी भी जमीन कंद या किसी भी प्रकार के जमीन में उगे हुए पदार्थ खाए नहीं और किसी भी प्रकार के व्यसन को जीवन में स्थान दिया नहीं। माता-पिता ने हमेंशा धार्मिक और जीव दया के संस्कारों का ज्ञान दिया और वही सब मुझे विरासत में मिला है।
मेरी पढ़ाई डीसा में दोशी एन.जे.आदर्श हाइस्कूल और डीसा की एस . सी डबल्यू हाइस्कूल में हुइ। पढ़ाई खत्म होते ही पिताजी ने मुंबई में मेरे काका सुमेर भाई हुंडिया के पास हीरो का व्यापार सीखने के लिए भेजा। और इस तरह मातृभूमि डीसा से माया नगरी मुंबई शहर की ओर जीवन का अगला अध्याय शुरू हुआ।
प्रश्न – अब तक का सफर कैसा रहा और किन मोड़ से गुजर तक यह मुकाम पाया ?
हार्दिक हुंडिया- जैसे कि मैंने बताया कि पढ़ाई पूरी हो गई तो पिताजी ने मुझे मुंबई मेरे काका के पास हीरा उद्योग से जुड़ने के लिए भेजा मेरे काका सुमेर भाई हीरा उद्योग से जुड़े थे मैं भी उनके साथ हीरे का काम सीखने में जुड़ गया। नया शहर था नए-नए दोस्त मिलते गए और मुझे मुंबई रास आने लगी । ऊंची कद काठी और आकर्षक व्यक्तित्व के साथ सुंदर चेहरा मेरे इस व्यक्तित्व को देखकर दोस्तों ने कहा कि मुझे फिल्म लाइन में अपनी किस्मत आजमानी चाहिए। हीरे का काम सीख रहा था परंतु दिमाग में हीरो बनने का ख्याल ज्यादा सवार होने लगा। उन दिनों में एक्टिंग सिखाने के लिए नमित किशोर कपूर का नाम लोकप्रिय था। मैंने भी एक्टिंग के क्लास ज्वाइन करके एक्टिंग सीखी। और मुझे एक और लावारिस फिल्म में बतौर हीरो का ऑफर भी आ गया। शूटिंग चालू हुआ पर सेट पर पहुंचते ही जब मैं देखता था कि यहां तो मांसाहार और मदिरापान होता है। मेरा मन व्यथित होने लगा। माता-पिता के दिए हुए पवित्र संस्कार मन में आने लगे काफी रुपए भी खर्च किए थे परंतु फिर भी मैंने मेरे अंतरात्मा की आवाज सुनी और फिल्म करियर को वहीं पर ही छोड़ कर अपने जीवन को एक नया मोड़ देने का प्रयास करने के लिए फिर से नई दिशा ढूंढने का प्रयास किया। कहते हैं ना जब मन की आवाज हम सुनते हैं तो उसका फल हमेंशा अच्छा होता है। अचानक हीरा बाजार के मेरे मित्र नरेश देसाई मिल गए बातों बातों में कहने लगे कि आपकी मातृभाषा अच्छी है, आपके विचार और आपकी बात करने की रित भी सकारात्मक है । मेरे पास एक टाइटल है क्या अखबार प्रकाशित करना चाहोगे? वह पल आज भी याद है मुझे लग रहा था जैसे माता सरस्वती जी मुझे आशीष दे रही है कुछ कर दिखाने का मौका मुझे मिल रहा है। माता सरस्वती जी ने जैसे तथास्तु किया और भारतीय हीरा उद्योग में हीरा माणेक अखबार मैंने प्रकाशित किया। सत्य को सम्मान और अन्याय के खिलाफ पडकार इस टाइटल स्लोगन के साथ विश्व के प्रथम क्रमांक के भारतीय हीरा उद्योग की हर खबर को संकलित करके अखबार का प्रकाशन किया ।आज 27 सालों से पत्रकार जगत में सजग कलम प्रहरी के रूप में मेरी पहचान हिरा माणेक अखबार के द्वारा हुई है।
हीरामाणेक के मंच से समाज में विभिन्न क्षेत्रों में योगदान प्रदान करने वाले महानुभावों का हीरामाणेक रत्न एवोड से सम्मान करने का अवसर प्राप्त हुआ। जाने-माने फिल्म फाइनेंसर और हीरा उद्योगपति भरत शाह को मैन ऑफ द मिलेनियम अवार्ड से सम्मानित किया उस कार्यक्रम में स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर उपस्थित रहे थे। पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी, उनकी मातुश्री हीराबा, धर्म पत्नी जशोदाबेन, क्रिकेट जगत में सचिन तेंदुलकर, कपिल देव, सौरव गांगुली, प्रखर हिंदू सम्राट बालासाहेब ठाकरे जी, रतन टाटा, फिल्म अभिनेत्री रेखा, हेमा मालिनी, धर्मेंद्र, देवानंद, अक्षय कुमार, बैडमिंटन स्टार पीवी सिंधु, कमल हासन सहित टेलीवुड और बॉलीवुड के अनेक सितारों को सम्मानित करने का और मुलाकात करने का मौका मुझे मिला है। जीवन एक सिक्के के दो बाजू जैसा है जो हमें हर पल याद रखना चाहिए । जैसे हर कदम पर, हर मोड़ पर अथक परिश्रम के बल पर सफलता पाते हैं तो वही सफलता हमें समाज के प्रति ज्यादा जागरूक भी करती है। भारतीय हीरा उद्योग में पिछले 27 सालों से हर खबर को तटस्थ रूप से प्रकाशित करने में मेरी कलम हमेंशा अग्रसर रही है। आप भी जानते होंगे कि बहुचर्चित पीएनबी बैंक घोटाला जो जग प्रसिद्ध हुआ है। इस घोटाले के मुख्य सूत्रधार मेहुल चौकसी और नीरव मोदी जो भारत के हीरा उद्योग से जुड़े हैं ।
मेहुल चौकसी और नीरव मोदी के बारे में भारतीय मीडिया के द्वारा मैंने उनके सारे गलत कामों को उजागर किया है। कैसे यह दोनों हीरे की ज्वेलरी के झूठे सर्टिफिकेट लोगों को देते थे और हल्के हीरो की ज्वेलरी भारी कीमतों में बेचते थे यह सारी सच्ची बात मैंने पारदर्शी रूप से मीडिया के द्वारा प्रकाशित करके समाज को सच्ची बात से अवगत कराया है। 50000 करोड़ का हीरा उद्योग का सबसे बड़ा कौभांड भी खोल कर दुनिया के सामने सच्चाइ लाई है।
जैन कुल में जन्म हुआ है उसका मुझे गौरव है। विश्व वंदनीय जैन धर्म के सिद्धांत बहुत ही चुस्त है। पूरा विश्व इस धर्म के सामने नतमस्तक है। ऐसे परम पवित्र धर्म की रक्षा मेरा प्रथम कर्तव्य है। और इसलिए अगर कोई भी व्यक्ति धर्म के नाम पर अगर आडंबर करता है या तो व्यभिचार करता है तो उसको समाज के सामने खुला करने में मैं कभी भी पीछे हट नहीं करता हूं। दीक्षा ग्रहण करके धर्म के सिंहासन पर बैठने वाले धर्मगुरु अगर धर्म को धंधा बनाने की कोशिश करें या तो दुराचार करें तो उनको भी बेनकाब करके उनके गलत कामों को समाज के सामने लाने में मैं हमेशा सक्रिय रहकर कार्य करता हूं । मेरे इस कार्य को रोकने के लिए कई बार कई तत्व कोशिश करते हैं की मुझे डरा धमका कर यह सब ना करने से रोका जाये । परंतु मैं मेरे धर्म के साथ अडिग था, अडीग हुं और हमेशा रहुंगा।
प्रश्न- आपने स्वयं का व्यवसाय शुरू करने की प्रेरणा कहां से मिली और कौन था प्रेरणा?
हार्दिक हुंडिया- मेरे अंतरात्मा की पुकार, मेरी जन्मभूमि की मिट्टी से प्रणाम करके जब कर्म भूमि मुंबई में कदम रखा तब जीवन के उतार-चढ़ाव के पायदान पर कदम रखने का समय शुरू हो गया था। यह माया नगरी अपनी गोद में सबको समा लेती है पर बशर्ते उस व्यक्ति में पुरुषार्थ के गुण होने चाहिए।
मुझे पिताजी ने बचपन से ही मेहनत के पाठ पढ़ाए थे इसलिए काका के साथ हीरा उद्योग में जुड़ा। वहां से किस्मत अजमाने फिल्म लाइन में भी गया, रेडीमेड शर्ट का कारोबार भी किया, जीवन की हर सुबह मुझे एक नए इंम्तहान देने के लिए उठाती थी तब मैं भी मन में दृढ़ निश्चय के साथ चलना शुरू करता था । ठोकर भी लग रही थी परंतु अच्छा क्या और बुरा क्या उसकी पहचान भी यही दिनों में हो रही थी और यही सारी बातें मुझे जीवन में कुछ नया करने की प्रेरणा बनकर मुझे और ज्यादा उत्साहित और दृढ़ निश्चयी बना रहे थे। माता के द्वारा दिए हुए धर्म के संस्कार और पिताजी का सत्य के आग्रही के संस्कार मेरे जीवन के हर अच्छे बुरे मोड़ पर मेरे साथ मजबूत पिलर की तरह थे और इसलिए आज भी मैं मेरी कलम के साथ तटस्थ हूं ।
प्रश्न – आपके समय की पढ़ाई/शिक्षा प्रणाली और आज के अप्रोच मैं क्या और कितना अंतर देखते हैं?
हार्दिक हुडींया- वह भी क्या दिन थे? बचपन की वह शिक्षा- स्कूल जाना- पढ़ाई करना और फिर दोस्तों के साथ खूब खेलना आज भी वह लम्हा यादों में जुड़ा हुआ है। पढ़ाई में बेशक बहुत ही सादगी थी। शिष्टाचार था। गुरुजन और विद्यार्थी के बीच एक भावनात्मक रिश्ता था। गलती करने पर सजा मिलती थी तो अच्छी पढ़ाई करने पर गुरुजन पीठ थपथपाते थे। उस समय शिक्षा का वातावरण बहुत ही सादगी प्रधान था परंतु शिक्षा की नींव बहुत ही मजबूत थी और इसलिए आज भी हमें मिली हुई शिक्षा हमको हर क्षेत्र में कामयाबी हांसिल करने के लिए प्रेरणा रूप बनती है।
आज की शिक्षा प्रणाली के बारे में अगर बात करूं तो यही कहूंगा कि आज समय बदल गया है, पहले बहुत सीमित था । अब 21वीं सदी है
शिक्षा अब शिशु के जन्म के साथ ही जैसे प्रारंभ हो जाती है। प्ले ग्रुप से ही बच्चों को शिक्षित करने का प्रयास हर माता-पिता करने लगते हैं। ऐसा लगता है कि बच्चे बड़े ही तेज गति से बड़े हो जाते हैं। सोश्यल नेटवर्किंग के साथ-साथ बच्चे अपना बचपन शायद पूरी तरह से जी नहीं पाते हैं । कई तरह के क्लास जैसे की डांस क्लास, ड्राइंग क्लास, कराटे क्लास सीखने में इनका बचपन बीत जाता है। आधुनिक शिक्षा प्रणाली का भविष्य बहुत अच्छा है यह मैं मानता हूं। परंतु मैं समझता हूं कि बच्चे को उसके खुद के जीवन के लिए भी कुछ समय देना चाहिए।
शिक्षा क्षेत्र में प्रगति होने से आज हर क्षेत्र में बच्चे सफलता प्राप्त करके देश का गौरव बढ़ा रहे हैं।
प्रश्न- इस कथन पर आपके क्या विचार है कि सेवा अब सेवा ना होकर एक व्यवसाय बन गया है

हार्दिक हुडींया- अक्सर कहा गया है कि पून्य का कोई भी कार्य करो तो एक हाथ से करो तो दूसरे हाथ को भी पता नहीं चलना चाहिए। सेवा के काम का कभी भी प्रदर्शन नहीं करना चाहिए।
धर्म के लिए मेरे विचार यह है कि धर्म में आडंबर नहीं करना चाहिए और सबसे बड़ी बात धर्म के नाम पर धंधा नहीं करना चाहिए। धर्म अंगीकार किया है, साधु वेश अपनाया है फिर आपको सांसारिक प्रवृत्ति में रुचि नहीं लेनी चाहिए और धर्म की आड़ में दुराचार अगर कोई करता है तो मैं उसका सख्त रूप से विरोध करता हूं। अगर कोई धर्म की आड़ में गलत काम करता है तो समाज के सामने मैं उसे उजागर करता हूं।
प्रश्न- किसने आपके जीवन को सर्वाधिक प्रभावित किया?
हार्दिक हुडींया- मेरा जैन कुल में जन्म हुआ है वह मेरे धन्य भाग्य है। माता बक्षुबेन निर्मल नदी की तरह पवित्र और गुरु भगवंतो की निश्रा वही सच्चा धर्म यह संस्कार मुझे माता की तरफ से मिले हैं जो मेरे जीवन में हर पल उपयोगी बने हैं। पिताजी ने जीवन में हमेंशा प्रमाणिकता की शिक्षा दी है और सत्य का आचरण करना वही सिखाया। आज पिताजी के दिए हुए संस्कार मेरे जीवन में सर्वाधिक रूप से प्रभावित है।
धर्म मार्ग पर चलकर आज भी जिनका मेरे जीवन में सबसे अधिक प्रभाव है वह है मेरे गुरु श्रीमद् विजय श्री हिमाचल सुरीश्वर जी महाराज साहेब जिन्होंने मुझे धर्म के संस्कार और बोध पाठ दिए हैं जो आज भी मेरे लिए परम आदरणीय है और वंदनीय है मैं उनको नमन करता हूं।
प्रश्न- सफलता के लिए आपने क्या नई तकनीक और कदम उठाएं?
हार्दिक हुडींया- सफलता यह शब्द बहुत छोटा है परंतु इस को पाने के लिए सफर बहुत लंबी है । गुजरात से शिक्षा पूरी करके जीवन में सफलता पाने के लिए मैंने जब सफर शुरू की तब मेरे साथ मेरे संस्कार और मेरा दृढ़ निश्चय था। मुंबई नगरी को कार्यक्षेत्र के रूप में चुना। बहुत ही उतार-चढ़ाव को जिंदगी में करीब से देखा। जीवन के हर पायदान पर जैसे इम्तहान मेरा इंतजार कर रहा है ऐसा लग रहा था परंतु साथ साथ में अनुभव भी बहुत कुछ सिखा रहा था। इस यात्रा में अच्छे दोस्त भी मिले। कई बुरे तजुर्बे भी हुए जिसने जिंदगी में कुछ कड़वे अनुभव भी करवाएं। पर जीवन में जो संकल्प लिया है उसको पूरा करना ही था यह बात को ठान ली है और इसलिए जब हीरा माणेक अखबार प्रकाशित करने के समय हर बारीकी को शिखा, शब्दों का आंकलन किया, वांचन किया, मनन किया।
आज के आधुनिक युग में आए हुए हर इलेक्ट्रॉनिक साधनों को कैसे चलाना वह सीख कर हर नई खोज को सीखने का मन में उत्साह दिखाया । कंप्यूटर से लेकर आधुनिक मोबाइल , कार चलानी भी सीख ली क्योंकि जमाने के साथ हर कदम पर कदम मिलाना है तो हर टेक्नोलॉजी तो सीखनी ही पड़ेगी तभी तो जमाने के साथ तेजी से चल सकेंगे।
प्रश्न आनंदमई और सकारात्मक जीवन शैली के लिए कौन सी बातें अहम होती है?
हार्दिक हुडींया- इसके लिए एक ही बात जरूरी है कि खुद के साथ प्रमाणिक बनो और हर पल आनंद में रहने के लिए खुद से प्रमाणिक रहेना वही उसकी चाबी है।
सुबह उठकर प्रभु का स्मरण करके दिनचर्या प्रारंभ होती है। कांदिवली स्थित घर से मुंबई स्थित कार्यालय पर जाने के लिए बाय रोड कार में जो समय मिलता है उस समय का सदुपयोग में कर लेता हूं। व्यापार जगत की खबरों से लेकर उसके समाचार बनाना, इसके अलावा पूरे दिन में जो भी महत्वपूर्ण कार्य करने हो उसकी नोंध करने का समय भी मिल जाता है। सामाजिक जगत में सक्रिय होने के नाते अक्सर अनेक सामाजिक कार्य में खुद जाता हूं और इसके अलावा खासकर के जीव दया के कोई भी कार्य रहते हैं तो वहां में अपने आप को उपस्थित रखने में ज्यादा खुशी महसूस करता हूं। मेरे यह सारे कार्य मुझे जीवन में अपार खुशी देते हैं मुझे प्रेरणा देते हैं की सारी बातें मेरी सकारात्मक सोच की प्रेरणा बन जाती है।
प्रश्न- सेवा प्रकल्पो में समय देने की प्रेरणा और लक्ष्य क्या है?
हार्दिक हुडींया- आपको बता दूं कि हीरामाणेक अखबार के बैनर तले समाज में उम्दा कार्य करने वाले अनेक महानुभावों का सम्मान किया है। टेलीवुड और बॉलीवुड के फिल्म सितारों का भी सम्मान इसी मंच से किया है। परंतु फिर मेरे अंतर्मन को लगा की कन्या सन्मान, जीव दया का कार्य करने वालो का सम्मान और माताओ के सम्मान से बढ़कर कुछ भी नहीं है।
संसार की सभी माताओं का सम्मान करते हुए मातृवंदना कार्यक्रम का प्रारंभ किया आपको क्या बताऊं वह अनुभव अकल्पनीय है। अलग-अलग क्षेत्र में अपने उमदा योगदान प्रदान करके जिन महानुभावों ने देश दुनिया में भारत का नाम रोशन किया है ऐसे महानुभावों की आदरणीय मातुश्री का सम्मान करने का अवसर जब प्राप्त हुआ वह पल धन्य बन गई है। पालकी में बिठाकर माताओं का आगमन , मंच पर सिंहासन पर बैठाकर माताओं के चरण दूध से धोना, तिरंगा दुपट्टा और सम्मान पत्र-श्रीफल-माला से माताओं को सम्मानित करना और उस समय माताओं के मुखारविंद से जो अमृतमइ आशीष वचन सुनने को मिलते हैं बस जीवन सफल हो गया है।
इसी कड़ी में जब बेटियों का साफा- श्रीफल- माला और सम्मान पत्र से सम्मान करने की घड़ी में उनके पैरों को कुमकुम पगले से उनका स्वागत किया जाता है तब यह सारी सेवा -सम्मान की हर पल मेरे जीवन की अनमोल पल मानी जाती है।
प्रश्न- इस उम्र में भी आपकी इतनी सक्रियता और इतनी फिटनेस बनाए रखने के लिए क्या करते हैं?
हार्दिक हुडींया- अपने मन को, अपने मस्तिष्क को हर पल व्यस्त रखो, अच्छे विचार, अच्छी बातें और अच्छा कार्य करने के लिए हरदम मन में उत्साह रखने से शरीर सक्रिय रहता है। मैं अखबार जगत से जुड़ा हूं। साथ में धर्म और सामाजिक क्षेत्र से भी मेरी सक्रियता है और इसलिए हर पल देश और दुनिया में क्या नई हलचल हो रही है वह जानकारी मुझे हरदम रखनी पड़ती है। और खास बात यह है कि मेरी ऑफिस में मेरे सह कर्मियों को मैं हमेशा मेरे परिवार की तरह रखता हूं । उनको कभी भी ऐसा महसूस नहीं होने देता हूं कि वह यहां काम कर रहे हैं। और इसलिए मेरे साथ काम करने वाले हर व्यक्ति खुश रहकर काम करता है। आज 27 सालों से अखबार को प्रकाशित करना और समाज के बीच हरदम जागरूक रहकर सक्रिय रहना पड़ता है और उसके लिए शरीर में तंदुरुस्ती रखनी बहुत जरूरी है।
मेरे फिटनेस के बारे में अगर कहूं तो बचपन से ही घर का बना सात्विक भोजन ही मेरी तंदुरुस्ती का राज है। पूर्ण रूप से जैन शाकाहारी भोजन, फल आदि खाना , स्वस्थ रहना, सब के बारे में अच्छा सोचना , प्राणी मात्र पर करुणा रखना यही मेरा फिटनेस फंडा है।
प्रश्न- नई पीढ़ी के युवा उद्यमियों को आप क्या गुरु मंत्र देना चाहोगे?
हार्दिक हुंडिया- नई पीढ़ी के युवा काफी सक्रिय है। सोशल नेटवर्किंग के साथ-साथ व्यापार उद्योग में भी नई टेक्नोलॉजी के साथ चलते हैं। ऑनलाइन व्यापार बढ़ गया है। परंतु फिर भी मेरी राय यह है कि नई टेक्नोलॉजी के साथ चलो पर जहां गुणवत्ता की जरूरत है, जहां आपको लगे कि देख कर सामान की खरीदी करने में ज्यादा फायदा है वहां पर पुरानी रीत पर चलने में भी पीछे रहना नहीं चाहिए क्योंकि व्यापार उद्योग में मुख्य बात विश्वास होता है जिसे आज सबको कायम रखने की खास जरूरत है।
प्रश्न- उद्योगपति और एवं रिटेलर के बीच अविश्वास को आप किस रूप से देखते हैं?
हार्दिक हुडींया- देखिए पहली बात तो यह है कि उद्योगपति और आम रिटेलर के बीच व्यापार उद्योग में अविश्वास आना ही नहीं चाहिए। क्योंकि व्यापार विश्वास पर ही होता है। पहली बात व्यापारी में अहम नहीं पालना चाहिए, दूसरी बात कंपटीशन नहीं करनी चाहिए अगर रिलेशन अच्छे रखने हो तो कम्युनिकेशन रखकर व्यापार में एक दूसरे के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना चाहिए।
प्रश्न- आम जनता के बीच समाज सेवा की कितनी जागरूकता है और इस संबंध में क्या किया जाना चाहिए?
हार्दिक हुडींया- जागरूकता की बहुत जरूरत है। कई बार देखा जाता है कि लोग देख कर भी अनदेखा करके जरूरतमंद को मदद नहीं करते हैं। समाज सेवा के लिए हमें हरदम तत्पर रहना चाहिए। पीड़ित- दुखी -असहाय लोगों की मदद के लिए तन मन धन से सेवा करनी चाहिए। सेवा करने के लिए कोई भी समय सीमा तय नहीं होती है। रास्ते चलते किसी को भी किसी भी प्रकार की सहायता की जरूरत हो जैसे कोई अकस्मात हुआ, कोई भटक गया है, ऐसे पीड़ित व्यक्तियों की हमें तुरंत मदद करनी चाहिए।
प्रश्न- वर्तमान प्रणाली में कितने और क्या सुधार आवश्यक है?
हार्दिक हुडींया- हमारा देश एक महान राष्ट्र है। हमारी संस्कृति अजोड़ है। हमारे धर्म और सिद्धांत को विश्व नमन करता है। ऐसे महान राष्ट्र में हम रहते हैं यह हमारे लिए गौरव की बात है। खास बात यही कहूंगा कि जैसे वर्तमान में विश्वव्यापी कोरोना वायरस फैला है। जहां से यह वायरस फैला है वह एक बात है। पर कम से कम हमारे देश में हम अबोल जीवो पर करुणा रखकर उनको जीने दे। मांसाहार का त्याग हो, लोग स्वस्थ भोजन करें, अपने देश के खेत खलियान की रक्षा हो, देश में भाईचारा और अमन में शांति हो। प्रेरणादायक कार्य करो जिससे विश्व में अपनी संस्कृति की पहचान बने और सत्य के साथ में चलो।
प्रश्न- आपके मुताबिक आनंद की परिभाषा क्या है?
हार्दिक हुडींया- आनंद की परिभाषा मेरे सोचने के मुताबिक हर प्राणी मात्र पर दया, धर्म की रक्षा , हर व्यक्ति का सम्मान और सकारात्मक सोच
प्रश्न- आप पत्रकार ना होते तो क्या होते?
हार्दिक हुडींया- मैं अगर पत्रकार ना होता तो हमारे जैन धर्म की दीक्षा ग्रहण करके जैन संत बनता ।
बचपन में मेरे मन में यही भावना प्रबल रूप से जागी हुई थी। मैं हमेशा गुरु भगवंतो की निश्रा में धर्म की पुस्तक का वांचन और गुरु उपदेश सुनने जाता था। मन में वैराग्य की भावना पनपने लगी थी। परंतु पिताजी ने कहा कि संसार में रहकर भी धर्म की रक्षा करना भी एक आपकी फर्ज है। पिताजी की सीख शिरोधार्य करके जीवन में जोड़ ली आज भी किसी भी परिस्थिति में धर्म के साथ समाधान नहीं करता हूं।
प्रश्न- अगर भगवान इतिहास की एक घटना बदलने का वरदान दे तो क्या करना चाहोगे?
हार्दिक हुडींया- इतिहास की घटना ऐसे तो नहीं बदली जा शकती है क्योंकि हर ऐतिहासिक घटना में अपना खुद का एक सामर्थ्य होता है परंतु स्वयं भगवान अगर वरदान दे तो मैं यही करना चाहूंगा कि पृथ्वी पर कभी भी कोई भी प्राणी मात्र की हत्या ना हो , कोई भी युद्ध ना हो जिसमें सबसे ज्यादा जीवो का संहार होता है। पूरे संसार में सिर्फ खुशहाली हो।
प्रश्न- एक ऐसा विषय या कार्य जिसे पूरा करने की आपकी दिली तमन्ना आज भी है।
हार्दिक हुडींया- मेरी दिल की तमन्ना हमेंशा से एक ही रही है कत्लखाने बंद हो जाए।
प्रश्न- आपके कोई विशेष शौक ?
हार्दिक हुडींया- मेरा प्रिय शौक है संगीत। मुझे करीब-करीब सारे संगीत के वाद्य बजाने आते हैं। जब भी मुझे मौका मिलता है मैं इन वाद्यों को बजाकर बहुत खुश होता हूं। मेरा दूसरा शौक है मित्रता करना और उसे आजीवन निभाना।
प्रश्न- अपनी पत्नी और बच्चों के बारे में क्या बताना चाहेंगे ?
हार्दिक हुडींया- मेरी जीवनसंगिनी सुनीता हुंडिया उनका मेरे जीवन में आना मेरे लिए जैसे एक प्यार का सागर का मिलना है। मेरी हर छोटी से छोटी बातों का ध्यान रखना, मेरे स्वास्थ्य को लेकर हमेंशा सचेत रहना, मैं पत्रकार जगत से जुड़ा हूं इसलिए घर पहुंचने में अगर देरी होती है तो इतने साल हो गए फिर भी जिस समय घर पहचुं उसी समय ताजा गर्म भोजन कराना वही उनका धर्म रहा है। मेरे हर सामाजिक कार्य में कंधे से कंधा मिलाकर उनका साथ रहना और परिवार को साथ लेकर चलने की भावना रखने वाली जीवनसाथी मेरी दोस्त है। स्टार रिपोर्ट मैगज़ीन सुनीता की प्रेरणा है, परिकल्पना है। धार्मिक कार्यों में अधिक रुचि रखकर हमेशा धर्म के कार्यों में विशेष योगदान सुनीता रखती है। मेरे परिवार की खुशी मेरी बेटी निराली। मैं उस पर जितना गर्व करूं उतना कम है। शुरू से ही पढ़ाई में अव्वल रहने वाली मेरी बेटी निराली ने साइकोलॉजी में मास्टर्स की डिग्री ली है । यूनिवर्सिटी में प्रथम और पूरे मुंबई में द्वितीय स्थान पर साइकोलॉजी मास्टर्स बनकर वह आज चाइल्ड काउंसलिंग में सफलता के शिखर पर है। मेरा परिवार मेरी जिंदगी है।
प्रश्न- आप जिंदादिल और जीवन के आनंदमई क्षणों को हमारे पाठकों के साथ बांटना चाहेंगे ?
हार्दिक हुडींया- मेरे वतन , मेरे देश से मुझे बहुत प्यार है और मैं हमेंशा वैसे ही रहा हूं जैसा मेरे मन में यानी कि अंतरात्मा ने कहा। दूसरी बात मन की शांति और सलामती के साथ-साथ भाईचारा बना रहे उसके लिए मैं हमेंशा प्रयत्नशील रहता हूं। कुछ समय पहले मैंने मस्जिद से मंदिर कौमी एकता वीर यात्रा का भी आयोजन किया था। हमारे देश के जवान भाइयों के लिए भी मैं अक्सर सामाजिक कार्य करके उनको और उनके परिवार को मदद रूप होने का भी प्रयत्न करता हूं।
जिंदादिल रहना मेरा स्वभाव है। आनंद की पल की अगर बात करो तो मेरा परिवार, मेरा कार्य मुझे हरदम खुशी देता है। परंतु मेरी बेटी निराली का जन्म मेरे जीवन की सबसे सुखद पल है। नन्ही सी परी को मैंने जब मेरे दो हाथों में उठाया था उस पल को मैंने मेरी यादों के पिटारे में संजो कर रखा है। मेरा अखबार हीरामाणेक और स्टार रिपोर्ट कि लोकप्रियता मेरे जीवन की खास पल है।
मुझे पत्रकार जगत में उम्दा योगदान प्रदान करने स्वरूप वर्ल्ड पीस अवॉर्ड, गुजरात गौरव अवार्ड, पॉजिटिव जर्नालिझम अवॉर्ड, सरदार पटेल अवार्ड, पराज पुरस्कार, प्रेस क्लब ऑफ दिल्ली द्वारा बेस्ट जर्नलिस्ट अवार्ड, सहित कई सम्मानो से सम्मानित होने का गौरव मुझे जीवन में मिला है। उतना ही नहीं मैंने जिस स्कूल से शिक्षा प्राप्त की उस डिसा शहर के विद्यालय एचसीडब्ल्यू हाई स्कूल द्वारा बेस्ट स्टूडेंट का लाइफटाइम अचीवमेंट अवोड जब मुझे मिला वो क्षण में जीवन में कभी भी नहीं भूल सकता ।
मैंने जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। परंतु परमात्मा पर मेरी अडिग श्रद्धा ने हर वक्त को मेरे लिए आसान करके मुझे जीवन में एक सफल व्यक्ति बनाया है। मुझे जन्म देने वाले उपकारी माता पिता एवं गुरुजन और जैन कुल मे जन्मे मिला उसके लिए मैं परम कृपालु परमात्मा का आभारी हूं।

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