‘सिर्फ मैं और ‘एक बच्चा पर्याप्त है’ आने वाले 20 वर्षों में मारवाड़ी परिवारों से कई रिश्ते हमेशा के लिए खत्म हो जाएंगे—भाई, भाभी, देवर, देवरानी, जेठ, जेठानी भाई बहन जैसे रिश्ते धीरे-धीरे इतिहास बन जाएंगे।
“रिश्तों के आंगन में अब सन्नाटा है,खुशियों का दीप भी बुझ जाता है,जो घर कभी महकते थे अपनेपन से,आज वहां तन्हाई का डेरा है।”
अब घरों में केवल ढाई-तीन लोगों के परिवार ही बचेंगे। न कोई बड़ा भाई होगा जो सांत्वनादे, न छोटा भाई जो हंसी-ठिठोली करे। बहू भी अकेली होगी, न देवरानी होगी, न जेठानी। यह सब ‘सिर्फ मैं और ‘एक बच्चा पर्याप्त है’ की सोच का नतीजा है।
“जहां हंसी की गूंज हुआ करती थी,अब वहां खामोशी बिखरी पड़ी है, जो रिश्ते कभी दिल से जुड़े थे,आज वो औपचारिकता में सिमट गए।”
मारवाड़ी परिवार धीरे-धीरे समाप्त हो रहे हैं। पहले बड़े परिवार छोटे-छोटे घरों में भी खुश रहते थे, लेकिन अब बड़े-बड़े बंगलों में सिर्फ गिनती के लोग ही बचते हैं। यह बेहद चिंता का विषय है।
“महलों में भी अब सूनापन है,दिलों के रिश्ते बेमानी से हो गए, जो घर कभी अपनापन से भरपूर थे,अब वहां अनजाने एहसासों की छांव है ।”
हमें अपनी सोच बदलनी होगी। बच्चों की शादी की उम्र 20-24 वर्ष के बीच तय करनी चाहिए। सफलता की दौड़ में विवाह को 30-35 तक टालने से एक पूरी पीढ़ी का अंतर आ जाता है।
“वक़्त के साथ जो बदल जाता है, वो वक़्त की धारा में बह जाता है, रिश्तों को जो अहमियत नहीं देता, वो एक दिन खुद अकेला रह जाता है।”
स्वार्थ और अकेलेपन की यह मानसिकता हमारी अगली पीढ़ी के लिए घातक सिद्ध हो रही है। हमें अपने बच्चों को परिवार और रिश्तों की अहमियत सिखानी होगी ताकि वे उनके महत्व को समझें।
“रिश्तों की डोर अगर टूट गई, तो अपनों का सहारा कौन देगा? जो अकेले चलने की जिद करेगा, वो गिरकर संभलने को तरसेगा।”
मारवाड़ी समाज से अनुरोध है कि बच्चों को जितनी भाषाएँ सिखाएं, लेकिन घर में मारवाड़ी भाषा का उपयोग अवश्य करें, ताकि हमारी संस्कृति सुरक्षित रह सके।
परिवारों के छोटे होने का सबसे बड़ा कारण माता-पिता में संस्कारों की कमी और बढ़ता हुआ अहंकार है। याद रखें, जो बीज आज बो रहे हैं, वही कल वृक्ष बनकर आपके सामने आएंगे।
“संस्कारों की जड़ें जब सूख जाती हैं,
तो परिवार भी बिखर जाते हैं, जो अपनों को नहीं संभाल पाते, उनके घर सन्नाटों से भर जाते हैं।”
यह एक गंभीर सोचनीय विषय है! लेखक मनीषा जैन पत्रकार इंदौर