गुरु तत्व को समझने वाला ही जीवन जीने की कला सीख पाता है – मुनि जिनागमरत्न विजय

मेघनगर।
हमने मानव भव को पाया, मानव भव में जैन धर्म को पाया, अरिहंत परमात्मा को पाया, प्रभू महावीर का शासन पाया, इस शासन में दादा गुरुदेव और पुण्य सम्राट गुरुदेव को भी पाया लेकिन इन सबको हमने क्यों पाया ? और इनसे हमने क्या पाया ? हमे यह समझने की आवश्यकता है। हमे अपने जीवन को कैसे जीना है, इसके लिए सबसे पहले हमे गुरु तत्व को समझना जरूरी है। उक्त उद्गार आज मेघनगर पधारे पुण्य सम्राट गुरुदेव श्रीमद विजय जयंतसेन सुरीश्वरजी महाराजा के शिष्य एवं वर्तमान गच्छाधिपति श्रीमद विजय नित्यसेन सुरीश्वरजी एवं आचार्य श्रीमद विजय जयरत्न सुरीश्वरजी महाराज साहब के आज्ञानुवर्ती मुनिराज श्री जिनागमरत्न विजयजी ने धर्मसभा में व्यक्त किए।
उक्त जानकारी देते हुए परिषद प्रवक्ता दिविक कावड़िया ने बताया कि, पूज्य मुनिराज श्री जिनागमरत्न विजयजी आदि ठाणा – 19 रम्भापुर से विहार कर ब्लॉक ऑफिस चौराहा पधारे जहा से नगर में मंगल प्रवेश हुआ। प्रवेश का वरघोड़ा साई चौराहा, दशहरा मैदान, शान्ति सुमतीनाथ जिनालय, आजाद चौक, गौडी पार्श्वनाथ होते हुए ज्ञान मंदिर पहुंचा। जहां पूज्य मुनिभगवंतो को अक्षत से वधाकर श्रीसंघ अध्यक्ष शांतिलाल लोढ़ा, ट्रस्ट अध्यक्ष मनोहर चौरडिया, नवयुवक अध्यक्ष देवेंद्र जैन, महिला अध्यक्ष श्रीमती स्नेहलता कावड़िया, तरुण अध्यक्ष रवि जैन ने अगवानी की, पश्चात मुनि भगवन्तों ने गुरु दर्शन कर धर्मसभा को संबोधित किया। सभा में पूज्य मुनिराज समर्पण विजयजी के सांसारिक पिताजी श्री परेशभाई एवम नूतन मुनिराज श्री जिनवल्लभ विजयजी के सांसारिक पिताजी संजयभाई सुराणा एवम माताजी श्रीमती रेणु सुराणा का बहुमान श्रीसंघ, ट्रस्ट एवम परिषद परिवार द्वारा किया गया। आज पूज्यश्री के दर्शन एवम विनंती हेतु झाबुआ, रम्भापुर, जावरा, खाचरोद, कुक्षी, लाबरिया, मुंबई, आदि श्रीसंघ के भक्त पधारे।
कार्यक्रम का संचालन रजत कावड़िया ने किया ।

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