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त्रिशला नंदन वीर की जय और “जियो और जीने दो” के जयघोष से गूंजा नगर
झाबुआ, एनएमटी समाचार एजेंसी।
अहिंसा के मसीहा, श्रमण भगवान महावीर स्वामी का जन्म कल्याणक महोत्सव झाबुआ में गुरुवार को श्रद्धा, भक्ति और धूमधाम के साथ मनाया गया। पूज्य गच्छाधिपति आचार्य जयानंद सूरीश्वरजी, आचार्य दिव्यांनंद सूरीश्वरजी एवं साधु-साध्वी मंडल की निश्रा में श्वेतांबर श्री संघ के तत्वावधान में भगवान महावीर की भव्य शोभायात्रा निकाली गई।
शोभायात्रा में श्वेतांबर मूर्ति पूजक समाज, स्थानकवासी समाज एवं तेरापंथ समाज – तीनों संघों ने मिलकर भाग लिया, जिससे नगर में अभूतपूर्व उत्साह का वातावरण निर्मित हो गया। श्री ऋषभदेव बावन जिनालय से प्रभु महावीर की श्यामवर्ण प्राचीन प्रतिमा के समक्ष विशेष अर्चना, भक्ताम्बर पाठ एवं स्नात्र पूजन के साथ दिन की शुरुआत हुई।
चांदी के रथ में प्रभु की शोभायात्रा निकली
चांदी के रथ में विराजित भगवान महावीर की प्रतिमा को लाभार्थी परिवार के सदस्य लेकर बैठे। रथ को युवाओं ने अपने हाथों से खींचा। जगह-जगह प्रभु की प्रतिमा पर अक्षत व श्रीफल से गहुली की गई। युवा वर्ग “त्रिशला नंदन वीर की जय”, “महावीर स्वामी का मूल सिद्धांत – जियो और जीने दो” जैसे नारों से वातावरण को गुंजायमान कर रहे थे। जैन सोशल ग्रुप (मेन) द्वारा विभिन्न स्थानों पर मिठाई का वितरण भी किया गया।
प्रवचन सभा में महापुरुषों ने दिए प्रेरणादायक संदेश
शोभायात्रा जिनालय पहुंचने के बाद प्रवचन कक्ष में धर्मसभा आयोजित की गई। सर्वप्रथम गच्छाधिपति श्रीमद् विजय जयानंद सूरीश्वरजी महाराज ने मंगलाचरण करवाया। उन्होंने कहा कि “यह विचार करने की आवश्यकता है कि हमें जैन धर्म में जन्म क्यों मिला? यदि हमने इसका चिंतन नहीं किया, तो यह मनुष्य जीवन व्यर्थ हो जाएगा।” उन्होंने नई पीढ़ी को धार्मिक संस्कारों से सज्जित करने की आवश्यकता बताई।
आचार्य दिव्यानंद सूरीश्वरजी ने कहा, “हमें प्रभु महावीर के गुण तो प्राप्त हुए, लेकिन हमने उन्हें जीवन में कितना उतारा – यह सोचने का विषय है। अच्छा देखना, अच्छा सुनना और अच्छा बोलना – इन तीन गुणों को अपनाने से मन शुद्ध होता है।”
मुनिराज वाचकविजयजी ने अपने प्रवचन में कहा, “आज से 2674 वर्ष पूर्व जन्मे महावीर स्वामी आज भी हमारी आत्मा के कल्याणक बनकर हमारे जीवन को दिशा दे रहे हैं। उनकी यह धारणा – ‘मेरी वजह से किसी को भी दुख न पहुंचे’ – आज भी उतनी ही प्रासंगिक है।”
मुनि विधान विजयजी ने कहा, “हमने प्रभु महावीर के ‘जियो और जीने दो’ के सिद्धांत को वास्तविकता में जीवन में उतारा ही नहीं। सूक्ष्म जीवों की जो हिंसा अनजाने में हो रही है, उसे रोकना अत्यंत आवश्यक है।”
समापन में हुई आरती और स्वधर्मी वात्सल्य
प्रवचनों के पश्चात प्रभु महावीर की आरती की गई। अंत में सकल श्री संघ द्वारा एक भव्य स्वधर्मी वात्सल्य (सामूहिक भोजन) का आयोजन निजी गार्डन में किया गया, जिसमें सभी समाजजनों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया।
(फोटो – आयोजन के दौरान के दृश्य, अंतिम युद्ध – रिंकू रुनवाल)
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