संयम, सेवा और साहित्य की त्रिवेणी: मुनिश्री मोक्षानंद विजयजी का संत परिचय

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13 अप्रैल (एन.एम.टी. न्यूज़ एजेंसी)।
वर्तमान गच्छाधिपति आचार्य श्री विजय नित्यानंद सूरीश्वरजी के हस्तदीक्षित परम श्रद्धेय और सुयोग्य शिष्य मुनिश्री मोक्षानंद विजयजी बहुमुखी प्रतिभा के धनी संत हैं। वे प्रभावशाली प्रवचनकार, दक्ष लेखक, श्रेष्ठ आयोजक और संयम जीवन के उज्ज्वल प्रकाशस्तंभ हैं।

मुनिश्री न केवल आचार्य श्री के लेखन कार्य का संचालन करते हैं, बल्कि युवाओं को धर्म से जोड़ने हेतु स्थान-स्थान पर सतत प्रवास कर रहे हैं। उत्तरी भारत के अनेक नगरों में युवकों को जैन धर्म से जोड़ने हेतु युवक मंडलों की स्थापना उनके प्रयासों का जीवंत प्रमाण है।

🧘 जन्म और वैराग्य का अंकुरण

6 दिसंबर 1977 को पंजाब के जंडियाला गुरु नगर में श्रावक महेश कुमारजी और श्राविका अभिलाषाजी के घर में जन्मे बालक “यतेश” (स्नेह से ‘चिंटू’) ने प्रारंभ से ही धर्म संस्कारों के साथ शिक्षा में भी श्रेष्ठ उपलब्धियां प्राप्त कीं।
लुधियाना में शिक्षा के दौरान वे विभिन्न पाठशालाओं, शिविरों और धार्मिक आयोजनों का सफल संचालन करते रहे। उनकी वक्तृत्व कला इतनी प्रभावशाली रही कि कॉलेज के प्रथम दीक्षांत समारोह में उन्हें पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल द्वारा “सर्वश्रेष्ठ वक्ता” के रूप में सम्मानित किया गया।

सन् 1989 में लुधियाना में आयोजित आचार्य विजय इन्द्रदिन्न सूरीश्वरजी के चातुर्मास में वैराग्य के बीज अंकुरित हुए, जो सन् 1995 में आचार्य विजय जनकचन्द्र सूरीश्वरजी और आचार्य विजय नित्यानंद सूरीश्वरजी के सान्निध्य में पुष्पित हुए। परिवार की आज्ञा से यतेश ने संयम पथ पर अग्रसर होते हुए दीक्षा का मार्ग अपनाया।

🔱 दीक्षा और आत्मनिर्माण

लुधियाना में चतुर्विध संघ की साक्षी में 22 वर्षीय मुमुक्षु यतेश की ऐतिहासिक दीक्षा संपन्न हुई और वे मुनिश्री मोक्षानंद विजयजी के रूप में धार्मिक समाज को प्राप्त हुए। दीक्षा के उपरांत उन्होंने संस्कृत, व्याकरण, साहित्य सहित अनेक विषयों में गहन अध्ययन किया। उनकी प्रवचन शक्ति जटिल विषयों को सरलता से श्रोताओं तक पहुँचाने की कला में निपुण है।

📝 लेखन और संगीत में निपुणता

मुनिश्रीजी एक प्रबुद्ध लेखक हैं। उन्होंने गुरु वल्लभ अष्ट प्रकारी पूजा, गुरु वल्लभ पच्चीसी, गुरु वल्लभ वंदनावली जैसे संगीतमय साहित्य की रचना की है। उनकी लेखनी ने जनक जीवन प्रकाश जैसे ग्रंथ को मुमुक्षुओं के लिए प्रकाश स्तंभ बना दिया।
साथ ही वे एक आशुकवि एवं सुमधुर गायक भी हैं—उनके भजनों पर श्रोता भावविभोर होकर झूम उठते हैं।

🌍 विचरण और सेवायात्रा

दीक्षा उपरांत उन्होंने प्रतिवर्ष लंबी यात्राएं कीं। पिछले 25 वर्षों में 55,000 किलोमीटर से अधिक की पदयात्रा करते हुए भारत के विभिन्न कोनों में धर्म का प्रचार-प्रसार किया।
उन्होंने दादर, कोलकाता, पुणे, बीकानेर, मुंबई, सूरतगढ़, मुरादाबाद सहित अनेक नगरों में युवक मंडलों की स्थापना की। इन मंडलों के माध्यम से समाज सेवा और जिनशासन आराधना को सशक्त किया।

🔥 तप और आराधना

मुनिश्री ने दो बार वर्षीतप, एक बार नव्वाणु यात्रा, चोविहार छठ, लगातार 50 और 60 एकासना, वर्धमान तप की 10 ओली, श्री बीस स्थानक तप आदि अनेक तपों का अनुष्ठान किया है।

🛕 राष्ट्रीय आयोजनों में अग्रणी भूमिका

गुरु वल्लभ के 50वें स्वर्गारोहण वर्ष, गच्छाधिपति जी के 50वें दीक्षा वर्ष, और श्रीमद् विजय वसंत सूरीश्वरजी के वर्षीतप महोत्सव जैसे आयोजनों में उन्होंने अग्रणी भूमिका निभाई।
दादर, वडोदरा, और जैतपुरा में आयोजित सार्ध जन्मशताब्दी महामहोत्सव की सफलता में उनका विशेष योगदान रहा।


पूज्य मुनिश्री मोक्षानंद विजयजी का संयममय जीवन, उनकी सेवा भावना और साहित्यिक प्रतिभा जैन समाज के लिए प्रेरणास्त्रोत है।
उनके संयम जीवन की अविरल यात्रा मंगलमय एवं निर्विघ्न बनी रहे—यही समाज की मंगलकामना है।

 

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