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इंदौर | 21 अप्रैल 2025 | एन.एम.टी. न्यूज़ एजेंसी
“मंदिर में भगवान के समक्ष अज्ञानता का प्रदर्शन न करें और पूजा-पाठ जैसी धार्मिक क्रियाओं में मनमानी न करें। जो लोग मनमानी करते हैं, वे सम्यक दृष्टि कहलाने योग्य नहीं होते।” उक्त विचार तपस्वी सम्राट उपाध्याय श्री विश्रुत सागर जी महाराज ने दिगंबर जैन आदिनाथ जिनालय, छत्रपति नगर में व्यक्त किए। वे गणाचार्य श्री विराग सागर जी महाराज के शिष्य हैं।
उपाध्याय श्री ने आगे कहा कि आजकल लोग मंदिरों में शांति पाठ तो पढ़ते हैं, परंतु उनके घरों में अशांति की गूंज सुनाई देती है। इसका मूल कारण है – राग, द्वेष और कषाय से ग्रसित मन। उन्होंने कहा कि “जियो और जीने दो” के सिद्धांत को अपनाकर सभी के प्रति मित्रभाव रखें, न कि शत्रुभाव। क्योंकि जिनमें शत्रुभाव होता है, उनमें भगवत्ता नहीं आ सकती। उन्होंने कहा – “अपने भावों को संभालना ही सबसे बड़ी साधना है, और जो अपने भावों को साध लेता है, उसका मोक्ष मार्ग स्वतः प्रशस्त हो जाता है।”
इस अवसर पर आर्यिका श्री विरम्याश्री माताजी ने भी धर्मदेशना देते हुए कहा, “त्याग से डरो मत, त्याग करो। त्यागियों के दर्शन और उपदेश से ही भावों में सकारात्मक परिवर्तन आता है, और वही परिवर्तन मोक्ष का कारण बनता है।”
धर्मसभा का प्रारंभ अतुल जैन द्वारा मंगलाचरण के साथ हुआ। प्रकाशचंद, शांतिलाल बड़जात्या एवं माणिकचंद नायक ने उपाध्याय संघ को श्रीफल समर्पित कर आशीर्वाद प्राप्त किया। आर्यिका संघ द्वारा उपाध्याय श्री के पाद प्रक्षालन किए गए। शास्त्र भेंट का सौभाग्य श्रीमती सुरेखा जैन एवं बलवंता जैन को प्राप्त हुआ। धर्मसभा का सफल संचालन भूपेंद्र जैन ने किया।
– महावीर सन्देश : राजेश जैन ‘दद्दू’
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