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इंदौर, | 21 अप्रैल 2025 | एन.एम.टी. न्यूज़ एजेंसी | दिगंबर जैन आदिनाथ जिनालय, छत्रपति नगर में आयोजित धर्म सभा में उपाध्याय श्री विश्रुत सागर जी महाराज ने पंचम काल के बारे में महत्वपूर्ण विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि पंचम काल में जन्म लेने वाले अच्छे नहीं माने जाते। वे यह भी उल्लेखित करते हैं कि चतुर्थ काल के लोग कहा करते थे कि यदि उन्होंने कोई पाप किया हो तो उनका जन्म पंचम काल में हो।
उपाध्याय श्री ने सभा में उपस्थित श्रद्धालुओं को उपदेश देते हुए कहा कि यदि हम अपना कल्याण एवं सुखी जीवन चाहते हैं तो हमें प्रत्येक जीव आत्मा से अनुराग करना चाहिए, न कि राग, क्योंकि राग ही दुख का कारण है। उन्होंने यह भी कहा कि “जगत को जीतने के बजाय स्वयं को जीतने का प्रयास करो, खुद को बदलें, लेकिन किसी से बदला लेने के भाव ना रखें।”
धर्म सभा में आर्यिका विजिज्ञासा श्री ने भी अपने विचार रखे और कहा कि जीवन में सुख और शांति प्राप्त करने के लिए समता का भाव रखना आवश्यक है। समता के बारे में उन्होंने एक प्रसिद्ध कहावत का उल्लेख किया, “समता अकेली सुख-दुख की सहेली।” आर्यिका श्री ने यह भी कहा कि मन में इतनी क्षमता जागृत करनी चाहिए कि हम किसी भी कष्ट को समता के साथ सहन कर सकें। कष्ट आते हैं तो दोष दूसरों का नहीं देना चाहिए क्योंकि सुख-दुख कर्मों से आते हैं। जब यह समझ व्यक्ति के जीवन में आएगा, तब से जीवन में सुख और शांति आएगी।
धर्म सभा का संचालन ट्रस्ट के अध्यक्ष भूपेंद्र जैन ने किया। कार्यक्रम के अंत में उपाध्यक्ष डॉ. जैनेंद्र जैन, प्रकाश पांड्या और महेंद्र जैन सुपारी वालों ने श्रीफल समर्पित कर आशीर्वाद प्राप्त किया।
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