“लोक भाषा प्राकृत और भगवान महावीर के वैज्ञानिक सिद्धांत” विषय पर प्राकृत भाषा विकास फाउंडेशन द्वारा ऑनलाइन संगोष्ठी का सफल आयोजन

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भोपाल, 22 अप्रैल 2025 | एनएमटी न्यूज़ एजेंसी
प्राकृत भाषा के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु कार्यरत संस्था प्राकृत भाषा विकास फाउंडेशन द्वारा “लोक भाषा प्राकृत और भगवान महावीर के वैज्ञानिक सिद्धांत” विषय पर एक ऑनलाइन संगोष्ठी का सफल आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी का मुख्य उद्देश्य प्राकृत भाषा के वैज्ञानिक, दार्शनिक और तात्त्विक पक्षों को जनमानस तक पहुंचाना रहा।

कार्यक्रम का मंगलाचरण डॉ. कोमल जी शास्त्री (प्राध्यापक, प्राकृत शोध पीठ, कानपुर) द्वारा किया गया। संस्था का परिचय एवं बीज वक्तव्य डॉ. आशीष जैन आचार्य (महामंत्री, प्राकृत भाषा विकास फाउंडेशन) ने दिया।

मुख्य वक्ताओं के विचार:

प्रमुख वक्ता डॉ. जयकुमार उपाध्येय (प्रोफेसर, प्राकृत शोध पीठ, श्रवणबेलगोला) ने भगवान महावीर के गहन विचारों को आधुनिक परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करते हुए यह बताया कि प्राकृत भाषा ज्ञान, विज्ञान, तर्क और दर्शन के क्षेत्र में अत्यंत समृद्ध रही है।

विशेष आमंत्रित वक्ता डॉ. सोनल शास्त्री (संयुक्त महामंत्री, अखिल भारतवर्षीय दिगंबर जैन शास्त्री परिषद) ने भगवान महावीर के सिद्धांतों की वैज्ञानिक विवेचना करते हुए बताया कि उनके उपदेश आज के विज्ञान की कसौटी पर भी पूर्णत: खरे उतरते हैं।

अध्यक्षता एवं विशिष्ट उपस्थिति:

इस संगोष्ठी की अध्यक्षता डॉ. ऋषभ फौजदार (अध्यक्ष, प्राकृत भाषा विकास फाउंडेशन) ने की, जबकि सारस्वत अतिथि डॉ. ज्योति बाबू (प्रभारी अध्यक्ष, जैन दर्शन एवं प्राकृत विद्या विभाग, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर) रहे।
डॉ. निर्मल जी ने समापन वक्तव्य देते हुए सभी प्रतिभागियों के प्रति आभार प्रकट किया।
कार्यक्रम का सफल संयोजन एवं संचालन डॉ. ममता जी पुणे (प्रचार मंत्री, प्राकृत भाषा विकास फाउंडेशन) द्वारा किया गया।

विद्वानों की गरिमामयी उपस्थिति:

इस संगोष्ठी में 70 से अधिक वरिष्ठ एवं युवा विद्वानों ने सहभागिता की, जिनमें प्रमुख रूप से:
डॉ. श्रेयांश बड़ौत (सर्वाध्यक्ष), डॉ. शैलेश जैन रामटोरिया, डॉ. राहुल (कानपुर), डॉ. श्रीनंदन (टीकमगढ़), डॉ. आशीष बम्होरी, डॉ. शैलेश जैन (बांसवाड़ा), पं. जितेंद्र शास्त्री, पं. अरुण शास्त्री, पं. राजेश शास्त्री, पं. लोकेश गनोड़ा सहित अन्य विद्वान शामिल हुए।

संगोष्ठी का निष्कर्ष:

संगोष्ठी के माध्यम से यह संदेश दिया गया कि प्राकृत भाषा न केवल लोक भाषा रही है, बल्कि उसमें दर्शन, विज्ञान और आध्यात्मिकता का अनमोल खजाना समाहित है।
इस आयोजन ने प्राकृत भाषा के प्रचार-प्रसार एवं भगवान महावीर के संदेशों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जन-जन तक पहुँचाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम सिद्ध किया है।

महावीर संदेश – डॉ. आशीष जैन

 

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