‘समन्वय वाणी’ के विद्यावदान विशेषांक का विमोचन, आचार्य श्री के बहुमूल्य योगदान को किया गया स्मरण
नई दिल्ली, 24 अप्रैल 2025 | एन.एम.टी. न्यूज़ एजेंसी
परम पूज्य सिद्धांत चक्रवर्ती, श्वेतपिच्छाचार्य श्री विद्यानंद जी मुनिराज के 100वें जन्मदिवस के उपलक्ष्य में, उनके जन्मशताब्दी वर्ष के शुभारंभ पर दिनांक 22 अप्रैल को कुंद-कुंद भारती परिसर में एक राष्ट्रीय विद्वत संगोष्ठी का भव्य आयोजन किया गया। इस विशेष अवसर पर आचार्य श्री श्रुतसागर जी, मुनि श्री अनुमान सागर जी तथा मूडबिद्री के भट्टारक चारूकीर्ति स्वामी जी ने अपना सान्निध्य प्रदान किया।
कार्यक्रम का संयोजन अखिल भारतीय जैन पत्र सम्पादक संघ द्वारा किया गया। गोष्ठी की शुरुआत मंगलाचरण के साथ हुई, जिसके पश्चात आचार्य श्रुतसागर जी ने आचार्य श्री की दूरदृष्टि और जिनवाणी के संरक्षण हेतु उनके अद्वितीय योगदान का उल्लेख करते हुए कहा कि ज्ञान का प्रसार ही आत्मकल्याण का मार्ग है।
मुनि श्री अनुमान सागर जी ने कहा कि यदि हम आचार्य श्री का केवल एक गुण भी आत्मसात कर लें, तो हमारा कल्याण सुनिश्चित हो सकता है। उन्होंने उनके बहुआयामी अध्ययन—लेखन, वक्तृत्व, ज्योतिष, ब्राह्मी लिपि, न्यायशास्त्र आदि विषयों की गहराई का उल्लेख किया।
डॉ. नलिन के. शास्त्री ने आचार्य श्री द्वारा विभिन्न विषयों पर लिखी गई पुस्तकों की चर्चा करते हुए उन्हें भावों का अथाह सागर बताया। डॉ. अनुपम जैन (इंदौर) ने वैदिक और जैन गणित के बीच के अंतर को रेखांकित करते हुए आचार्य श्री की गणितीय विद्वता पर प्रकाश डाला तथा आचार्य श्रुतसागर जी को गणित पर आधारित एक ग्रंथ भेंट किया।
डॉ. राजीव प्रचंडिया (अलीगढ़) ने जैन इतिहास और पुरातत्व में आचार्य श्री के योगदान को रेखांकित किया, जबकि डॉ. ऋषभचंद फौजदार (दमोह) ने उनके साहित्यिक दृष्टिकोण पर चर्चा करते हुए कहा कि आचार्य श्री की विचारधारा थी— “पहले पढ़ो, फिर समझो, फिर लिखो।”
डॉ. चिरंजीलाल बगड़ा (कोलकाता) ने बताया कि आचार्य श्री की विद्वता की शुरुआत कोलकाता से ही हुई थी, जहाँ उन्होंने क्षुल्लक अवस्था में 56 हजार पुस्तकों का अध्ययन किया था। इसी आधार पर उन्हें ‘सिद्धांत चक्रवर्ती’ की उपाधि प्राप्त हुई।
गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए डॉ. श्रेयांस कुमार जैन (बड़ौत) ने 1968 में आचार्य श्री के चातुर्मास तथा उस समय क्षेत्र में हुई धर्म प्रभावना का विस्तृत वर्णन प्रस्तुत किया।
गोष्ठी का संचालन करते हुए संयोजक डॉ. वीरसागर जैन ने कहा कि आचार्य श्री का मानना था कि सैनिक के हाथ से शस्त्र और वक्ता के हाथ से शास्त्र कभी नहीं छूटना चाहिए। वे सदा आगम आधारित वाणी का प्रयोग करते थे।
इस अवसर पर डॉ. अखिल जैन बंसल (जयपुर) ने कहा कि आचार्य श्री ने न केवल भारत में, अपितु विश्व भर में ज्ञान के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कुंद-कुंद भारती संस्था के अध्यक्ष श्री सतीश जैन (एससीजे) एवं मंत्री श्री अनिल पारसदास जैन द्वारा उपस्थित विद्वानों को अंगवस्त्र एवं प्रशस्ति पत्र भेंट कर सम्मानित किया गया।
समारोह में प्रख्यात न्यूरोसर्जन डॉ. डी.सी. जैन, संघपति श्री राजेन्द्र जैन, श्री राकेश जैन (गौतम मोटर्स), सुश्री तानिया जैन एवं श्री अजय जैन (मॉडल टाउन) सहित अनेक गणमान्य अतिथियों ने आचार्य श्री को श्रद्धांजलि अर्पित की।
कार्यक्रम का आरंभ जिन दर्शन, सामूहिक पूजन, चित्र अनावरण एवं पाद प्रक्षालन से हुआ। इस अवसर पर डॉ. अखिल बंसल द्वारा संपादित ‘समन्वय वाणी’ के 45 वर्षों से नियमित प्रकाशित विद्यावदान विशेषांक का लोकार्पण भी समागत विद्वानों द्वारा किया गया।