इंदौर, 02 मई 2025 | एनएमटी न्यूज़ एजेंसी
एक तीन वर्षीय बालिका द्वारा संथारा धारण करने का असाधारण मामला सामने आया है, जिसने न केवल जैन समाज में बल्कि देशभर में गहन चर्चा और विचार का विषय खड़ा कर दिया है। वियाना जैन, मात्र तीन वर्ष, चार माह और एक दिन की आयु में संथारा व्रत धारण कर इस संसार से विदा हो गई। जैन धर्म में यह व्रत मोक्ष की ओर अग्रसर अंतिम साधना मानी जाती है।
गंभीर बीमारी के बाद आध्यात्मिक मार्ग का चयन
वियाना को जनवरी 2025 में ब्रेन ट्यूमर हुआ था। इंदौर और बाद में मुंबई में इलाज के प्रयास किए गए। एक बार सर्जरी के बाद वह कुछ समय के लिए ठीक भी हुई, लेकिन मार्च 2025 में उसकी तबीयत दोबारा बिगड़ गई। इलाज के दौरान, परिवार ने आध्यात्मिक संबल के लिए बच्ची को आध्यात्मिक संकल्प अभिग्रह-धारी राजेश मुनि महाराज के दर्शन के लिए ले जाया।
मुनिश्री ने बच्ची की स्थिति को गंभीर बताते हुए संथारा व्रत का सुझाव दिया। परिवार, जो स्वयं मुनिश्री के अनुयायी हैं, ने इस कठिन धार्मिक निर्णय को सहर्ष स्वीकार किया। मुनिश्री पूर्व में 107 से अधिक संथारा व्रत संपन्न करा चुके हैं।
आधे घंटे की प्रक्रिया के बाद वियाना ने त्यागे प्राण
दिनांक 21 मार्च 2025 को वियाना ने संथारा व्रत धारण किया। यह धार्मिक प्रक्रिया आधे घंटे तक चली, जिसमें व्रत की विधिवत घोषणा, तप, संयम और मृत्यु को स्वीकारने का संकल्प लिया गया। धार्मिक प्रक्रिया पूर्ण होने के महज 10 मिनट बाद, वियाना ने अपने प्राण त्याग दिए।
आईटी प्रोफेशनल माता-पिता का कठिन निर्णय
वियाना के माता-पिता पीयूष और वर्षा जैन, दोनों ही आईटी क्षेत्र में कार्यरत हैं। उन्होंने यह निर्णय अत्यंत कठिन किंतु धार्मिक आस्था से प्रेरित होकर लिया। यह जानकारी उन्होंने केवल परिवार के कुछ घनिष्ठ सदस्यों — दादा-दादी, नाना-नानी और नजदीकी रिश्तेदारों — से ही साझा की थी।
संथारा व्रत की प्रक्रिया राजेश मुनि महाराज और सेवाभावी राजेन्द्र मुनि महाराज के सान्निध्य में पूर्ण की गई।
‘गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स’ में दर्ज हुआ नाम
इतनी अल्पायु में संथारा व्रत धारण करने के कारण वियाना का नाम ‘गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स’ में दर्ज किया गया है। इसके उपलक्ष्य में बीते बुधवार, इंदौर के कीमती गार्डन में एक सादे और गरिमामयी सम्मान समारोह आयोजित किया गया, जिसमें वियाना के माता-पिता को समाज द्वारा सम्मानित किया गया।
धार्मिक परिवेश और प्रारंभिक संस्कारों का प्रभाव
परिवार के अनुसार, वियाना एक चंचल, प्रसन्नचित्त और जिज्ञासु बालिका थी। उसे प्रारंभ से ही धार्मिक संस्कार दिए जा रहे थे — जैसे गोशाला जाना, पक्षियों को दाना डालना, गुरुदेव के दर्शन करना और पचखाण करना। इस धार्मिक परिवेश और जैन धर्म में गहराई से रचे-बसे वातावरण ने इस निर्णय को संभव बनाया।
समाज में गहन विमर्श का विषय
वियाना की यह आध्यात्मिक यात्रा अब केवल परिवार तक सीमित नहीं रही। यह पूरे जैन समाज और व्यापक धार्मिक विमर्श का केंद्र बन चुकी है। कुछ वर्गों में इसे धार्मिक आस्था का उत्कर्ष बताया जा रहा है, तो कुछ में इतने छोटे बच्चे के लिए लिए गए निर्णय पर नैतिक और सामाजिक बहस भी हो रही है।
हालांकि, वियाना का त्याग और परिवार की आस्था आज जैन धर्म के गूढ़ सिद्धांतों को नई पीढ़ी के समक्ष रखने का विषय बन चुकी है।
नोट: संथारा (या समाधि मरण) जैन धर्म का एक अत्यंत उच्च स्तर का व्रत है, जिसे अत्यंत गंभीर रोग या मृत्यु निकट आने की स्थिति में धर्म और संयम से मृत्यु का वरण करने हेतु स्वीकार किया जाता है। भारत में इसे लेकर पूर्व में भी संवैधानिक और नैतिक स्तर पर विवाद हो चुके हैं।
संवाददाता: सतीश जैन | इंदौर