संयमपथ पर अग्रसर मुमुक्षु आत्माओं ने अपनाया दीक्षा का महासंस्कार, श्रद्धा व भक्ति से गूंजा कल्याणपूरा
कल्याणपूरा | एनएमटी न्यूज़ एजेंसी |
धार्मिक उत्सवों में यदि कोई श्रेष्ठतम क्षण होता है, तो वह होता है – दीक्षा का दृश्य, जब कोई आत्मा संसार की मोह-माया, भोग और बंधनों को त्यागकर संयम, साधना और आत्मकल्याण की ओर कदम बढ़ाती है।
30 अप्रैल, अक्षय तृतीया के पुण्य अवसर पर ऐसा ही एक अत्यंत दुर्लभ और आध्यात्मिक क्षण थांदला की अणुभूमि में घटित हुआ, जब हजारों श्रद्धालुओं और साठ से अधिक संत-स्त्रियों की साक्षी में दो मुमुक्षु आत्माओं ने जैन भगवती दीक्षा को धारण किया।
ललित भाई भंसाली बने ललितमुनिजी – संयम का गौरव बने थांदला
थांदला के प्रतिष्ठित भंसाली परिवार के मुमुक्षु श्री ललित भाई भंसाली अब जैन भगवती परंपरा के ललितमुनिजी के रूप में विख्यात हो चुके हैं। उन्हें पूज्य श्री अतिशयमुनिजी का शिष्यत्व प्राप्त हुआ है। यह क्षण केवल भंसाली परिवार के लिए नहीं, बल्कि संपूर्ण थांदला और कल्याणपूरा श्रीसंघ के लिए भी गौरव का विषय बन गया है।
सुश्री नव्या शाह बनीं साध्वी यशस्वीजी
इसी पावन अवसर पर मुमुक्षु सुश्री नव्या शाह ने भी संयम पथ का वरण करते हुए, विदुषी महासती श्री संयमप्रभाजी की शिष्या बनकर साध्वी श्री यशस्वीजी के रूप में नया आध्यात्मिक जीवन आरंभ किया।
कल्याणपूरा बना पुण्यभूमि – बड़ी दीक्षा में उमड़ा श्रद्धा का सागर
कल्याणपूरा श्रीसंघ को यह अद्वितीय सौभाग्य प्राप्त हुआ है कि ललितमुनिजी की बड़ी दीक्षा का भव्य आयोजन वहीं सम्पन्न हो रहा है। जहां देशभर के विभिन्न नगरों – विशेषकर थांदला, रतलाम, झाबुआ, दाहोद से श्रावक-श्राविकाएं बड़ी संख्या में पहुँचकर संयम अनुमोदना कर रहे हैं।
अब तक लगभग 40 संयमी आत्माओं को इसी परंपरा में संसार के भवबंधनों से मुक्त कर भगवती दीक्षा प्रदान की जा चुकी है, जो कि जैन धर्म के अध्यात्मिक वैभव का प्रतीक है।
भंसाली परिवार ने किया भावपूर्ण आमंत्रण
थांदला के भंसाली परिवार ने दीक्षा महोत्सव को धर्म-परायण समाज के लिए एक अद्भुत पर्व मानते हुए, सभी समाजजनों से कल्याणपूरा पधारने और इस पावन दृश्य का लाभ लेने का विनम्र आग्रह किया है। उनका मानना है कि —
“दीक्षा केवल किसी एक आत्मा का परिवर्तन नहीं, अपितु संपूर्ण समाज की चेतना को जाग्रत करने वाला क्षण होता है।”
गौरवमयी संयम यात्रा को नमन – महावीर संदेश: नीलेश छाजेड़
“जब एक आत्मा दीक्षा लेती है, तब असंख्य आत्माओं को दिशा मिलती है। थांदला के ललितमुनिजी और यशस्वीजी की यह संयम यात्रा समस्त समाज के लिए प्रेरणा की अखंड ज्योति बन जाएगी।”