“वर्तमान को संभालिए, भविष्य स्वतः सुधर जाएगा” – मुनिश्री विलोकसागर

 

(मुरैना | एनएमटी न्यूज़ एजेंसी)

बड़ा जैन मंदिर में चल रहे श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान के तीसरे दिवस पर धर्मसभा को संबोधित करते हुए मुनिश्री विलोकसागर महाराज ने गहन आध्यात्मिक संदेश देते हुए कहा:

“सांसारिक प्राणी भविष्य की चिंता में अपने वर्तमान को बिगाड़ बैठता है। यदि हम अपना वर्तमान साध लें, तो भविष्य स्वयं ही उज्ज्वल हो जाएगा।”

मुनिश्री ने श्रद्धालुओं को आत्मचिंतन का संदेश देते हुए कहा कि यह मानव जीवन अनेकों पुण्य के फलस्वरूप प्राप्त हुआ है। इसे व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए। उन्होंने कहा कि कर्तव्यनिष्ठा ही जीवन की दिशा तय करती है, और जो वर्तमान में अपने कर्तव्यों का पालन करता है, उसका भविष्य कभी नहीं डगमगाता।

धार्मिक कर्तव्य से विमुख हो रहा समाज

मुनिश्री ने कहा कि आज का मनुष्य सांसारिक कार्यों में इतना रम गया है कि धर्म से विमुख होता जा रहा है। उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा:

“यदि आपकी ट्रेन 8:30 बजे की हो, तो आप स्टेशन पर समय से पहले पहुंचते हैं। लेकिन मंदिर में कोई अनुष्ठान हो, तो उसमें देरी करना आम बात बन गई है।”

उन्होंने समाज को सजग करते हुए कहा कि जिस भक्ति से आत्मा को कल्याण की दिशा मिलती है, उसमें भी हमें उतनी ही गंभीरता और समयबद्धता बरतनी चाहिए, जितनी हम भौतिक कार्यों में रखते हैं।

मुनिश्री विलोकसागर ने किया केशलोच – तप की कठिन साधना

इस अवसर पर मुनिश्री ने दिगंबर परंपरा की कठिन तपश्चर्या केशलोच को भी पूर्ण किया। उन्होंने अपने हाथों से सिर, दाढ़ी और मूंछ के बालों को उखाड़ते हुए तप और वैराग्य का जीवंत उदाहरण प्रस्तुत किया।

केशलोच केवल एक शारीरिक क्रिया नहीं, आत्मा की काया पर विजय पाने का प्रतीक है।

ज्ञात हो कि दिगंबर साधु कैंची, ब्लेड, रेज़र अथवा किसी रसायन का प्रयोग नहीं करते। वे अपने बालों को हाथों से उखाड़कर, संसार के प्रति वैराग्य और आत्मशुद्धि का संदेश देते हैं। यह प्रक्रिया लगभग हर 45 दिनों में संपन्न की जाती है।

सिद्धचक्र विधान का तीसरा दिवस – अर्घ समर्पण और भक्ति की सरिता

सिद्धचक्र महामंडल विधान के तीसरे दिन अभिषेक, शांतिधारा और पूजन की पावन विधियों के बाद विधान पुण्यार्जक चोरंबार जैन परिवार एवं सभी इंद्र-इंद्राणीयों द्वारा भक्ति भाव से अर्घ अर्पित किए गए।

पूरे मंदिर परिसर में भक्ति की एक अनोखी बयार बह रही थी – पुरुष पीले परिधान में, महिलाएं केसरिया साड़ियों में, मुकुट और हार से अलंकृत, सिद्धों की जय-जयकार करते हुए भावविभोर होकर नृत्य कर रहे थे।

इस धार्मिक उल्लास के मध्य प्रतिष्ठाचार्य महेन्द्रकुमार शास्त्री एवं राजेन्द्र शास्त्री मंगरोनी श्रद्धालुओं को पूजन विधि, श्लोकों का महत्व और उनका अर्थ भी सरलता से समझाते जा रहे थे।


इस आयोजन ने न केवल श्रद्धा का संचार किया, बल्कि आत्मा को जाग्रत कर कर्तव्यपथ की ओर उन्मुख किया। मुनिश्री के संदेशों ने यह स्पष्ट कर दिया कि – जब वर्तमान समर्पित होता है, तभी भविष्य संस्कारित होता है।


– महावीर संदेश / मनोज जैन नायक

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