श्री सिद्धचक्र विधान में समर्पित हुए 512 अर्घ, 22 मई को होगी जनज्ञान परीक्षा
मुरैना | एनएमटी न्यूज़ एजेंसी
“धर्म कोई बाजार से खरीदी जाने वाली वस्तु नहीं, बल्कि वह आत्मिक अनुभव है जो प्रत्येक प्राणी के भीतर विद्यमान है।”
इसी संदेश के साथ दिगंबर जैन संत मुनिश्री विलोक सागर महाराज ने स्थानीय बड़े जैन मंदिर में चल रहे श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान के अंतर्गत धर्मसभा को संबोधित किया। उन्होंने कहा, “धर्म की शक्ति इतनी प्रबल है कि वह विष को अमृत बना सकती है, तलवार की धार को नम्रता में बदल सकती है और सर्प को भी हार में रूपांतरित कर सकती है।”
धर्म: जीवन जीने की कला
मुनिश्री ने कहा कि धर्म प्राणी मात्र को जीवन जीने की कला सिखाता है। यह हमें न केवल सांसारिक संकटों से लड़ने की शक्ति देता है, बल्कि नफरत में भी प्रेम के बीज अंकुरित करता है। धर्म की आराधना से जीवन शुद्ध, पावन और उद्देश्यमय हो जाता है।
“जब जीवन के सारे रास्ते बंद हो जाते हैं, जब अपनों से दूरी हो जाती है, तब केवल धर्म ही हमारा सहारा बनता है,” उन्होंने कहा। उन्होंने भगवान राम और माता सीता का उदाहरण देते हुए बताया कि धर्म ही वह सहारा था, जिसने कठिन परिस्थिति में भी उन्हें संबल प्रदान किया।
हर दिन धर्म को दें समय
उन्होंने अपील की कि जैसे जीवन के लिए वायु आवश्यक है, वैसे ही संस्कारों से युक्त जीवन के लिए धर्म भी उतना ही जरूरी है। “यदि हम प्रतिदिन के 24 घंटों में से कुछ समय धर्म को दें, तो धर्म भी हमारी रक्षा करेगा।”
22 मई को होगी ज्ञान परीक्षा – सभी को मिलेगा पुरस्कार
पूज्य युगल मुनिराजों के निर्देशन में 22 मई को एक ज्ञान परीक्षा आयोजित की जाएगी, जिसमें भगवान महावीर स्वामी के जीवन और शिक्षाओं पर आधारित 150 प्रश्नों वाला प्रश्नपत्र सभी को दिया जाएगा। इच्छुक प्रतिभागी घर पर अध्ययन कर परीक्षा में भाग ले सकेंगे।
यह परीक्षा बड़े जैन मंदिर परिसर में आयोजित होगी और किसी भी आयु का, जैन अथवा अजैन व्यक्ति इसमें भाग ले सकता है।
परीक्षा में प्रथम, द्वितीय, तृतीय और सांत्वना पुरस्कार प्रदान किए जाएंगे।
इस आयोजन का उद्देश्य समाज को भगवान महावीर के व्यक्तित्व और आदर्शों से अवगत कराना है।
महावीर संदेश – मनोज जैन नायक