📍भोपाल/उदयपुर | एनएमटी न्यूज़ एजेंसी
आज जब दुनिया डिजिटल और तकनीकी भाषाओं की ओर अग्रसर हो रही है, ऐसे समय में भारतवर्ष की प्राचीनतम भाषा – प्राकृत – के प्रति जनमानस में अद्वितीय रुचि और उत्साह देखने को मिल रहा है। यही भावनात्मक पुनर्जागरण “प्राकृत भाषा विकास फाउंडेशन” एवं “अखिल भारतवर्षीय दिगंबर जैन शास्त्री परिषद” के संयुक्त तत्वावधान में साकार हो रहा है।
🔆 परम पूज्य आचार्य श्री सुनील सागर जी महाराज की पावन प्रेरणा से दिनांक 11 मई से 18 मई 2025 तक उदयपुर महानगर के 18 स्थानों पर भव्य “प्राकृत विद्या शिक्षण शिविरों” का आयोजन हो रहा है। इन शिविरों में देश भर से आए लगभग 35 विद्वान प्राकृत अध्यापन का कार्य कर रहे हैं – बच्चों से लेकर वृद्धजनों तक, सभी में अद्भुत जिज्ञासा और समर्पण भाव देखा जा रहा है।
🇮🇳 माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में प्राकृत भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिलना न केवल एक ऐतिहासिक निर्णय था, बल्कि भारतीय ज्ञान परंपरा के पुनरुत्थान की दिशा में एक सशक्त कदम भी। अब यह भाषा केवल ग्रंथों तक सीमित नहीं, बल्कि आम जन तक पहुंच रही है – जन-जन की भाषा बन रही है।
🎙️ राष्ट्रीय संयोजक डॉ. आशीष जैन आचार्य ने इस प्रयास की भावपूर्ण व्याख्या करते हुए कहा:
“प्राकृत भाषा आत्मा की तरह सरल, देश की तरह विशाल और संस्कृति की तरह गहराई लिए हुए है। हमारा प्रयास है कि यह हर भारतीय के जीवन में फिर से स्थान पाए।”
📌 क्षेत्रीय संयोजक श्री रितेश जैन और धरनेन्द्र शास्त्री ने बताया कि शिविरों की शुरुआत 11 मई से हुई है और 18 मई तक यह कार्यक्रम विविध स्थानों पर संचालित होगा। इन शिविरों में न केवल भाषा शिक्षा दी जा रही है, बल्कि प्राकृत में निहित भारतीय ज्ञान परंपरा, नैतिकता और साधना की भावना भी विद्यार्थियों में रोपित की जा रही है।
🎓 शिविरों का मार्गदर्शन देश के ख्यात विद्वानों – डॉ. उदयचंद जैन, डॉ. ज्योति बाबू जैन एवं डॉ. सुमित जैन (सभी उदयपुर) द्वारा किया जा रहा है, जिनके योगदान से प्राकृत अध्ययन का वातावरण अत्यंत जीवंत एवं समृद्ध बन पड़ा है।
🌿 यह शिक्षा शिविर प्राकृत भाषा के पुनरुद्धार की वह ज्योति है, जिसकी रोशनी अब देश के कोने-कोने में फैल रही है। यह प्रयास न केवल भाषाई चेतना को जाग्रत कर रहा है, बल्कि भारत के सांस्कृतिक गौरव को भी पुनः प्रतिष्ठित कर रहा है।
| महावीर सन्देश – डॉ. आशीष जैन