— आचार्य श्री सुन्दर सागर जी के प्रवचन से प्रेरक संदेश
इंदौर |एनएमटी न्यूज़ एजेंसी |
इंदौर में आयोजित धर्म सभा में दिव्य तपस्वी और राष्ट्र संत जैनाचार्य श्री सुन्दर सागर जी महाराज ने चिंता और चिंतन के बीच गहरे आध्यात्मिक एवं व्यवहारिक अंतर को समझाते हुए महत्वपूर्ण संदेश दिया। आचार्य श्री ने कहा कि चिंता और चिंतन में केवल एक अक्षर का फर्क है, लेकिन इसके प्रभाव में व्यापक अंतर है। जहां चिंता संसार में भटकाव का कारण बनती है, वहीं चिंतन संसार से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है।
चिंता: राग-द्वेष और मोह की जड़
आचार्य सुन्दर सागर जी ने बताया कि चिंता हमेशा राग, द्वेष, मोह जैसे नकारात्मक भावों के साथ जुड़ी होती है। ये भाव व्यक्ति के मन में क्रोध, मान, माया, लोभ, इर्ष्या और घृणा जैसे विकारों को जन्म देते हैं, जो अंततः मानसिक अशांति और जीवन में उलझनों का कारण बनते हैं। इस प्रकार चिंता न केवल व्यक्ति के आंतरिक शांति को भंग करती है, बल्कि उसकी आध्यात्मिक उन्नति में बाधक भी बनती है।
चिंतन: सम्यक ज्ञान और मोक्ष का मार्ग
इसके विपरीत, चिंतन आत्मा की गहराई में जाकर सकारात्मकता का संचार करता है। आचार्य जी ने बताया कि चिंतन से व्यक्ति के भीतर विमलता, सम्यक ज्ञान, सच्चा दर्शन और शुद्ध चरित्र का विकास होता है, जो मोक्ष के मार्ग को प्रशस्त करता है। चिंतन मानव को अपने अंदर झांकने और आत्म विश्लेषण के द्वारा जीवन के वास्तविक उद्देश्य को समझने में सहायक होता है।
आत्म चिंतन की आवश्यकता
अतः आचार्य जी ने मानव मात्र को व्यर्थ की चिंता त्यागकर आत्म चिंतन की ओर बढ़ने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि इस प्रकार की चिंतन प्रक्रिया से मन का विकार समाप्त होकर जीवन में शांति और संतुलन स्थापित होता है।
धार्मिक आयोजन और आचार्य संघ की भव्य अगवानी
वहीं, वर्धमानपुर शोध संस्थान के ओम पाटोदी ने बताया कि आचार्य संघ का विहार बुधवार शाम को नवग्रह जिनालय के लिए हुआ, जबकि गुरुवार को प्रातः आचार्य संघ छावनी पहुंचा। समाज जनों ने भव्य स्वागत किया और समर्थ सिटी परिवार ने आचार्य संघ को भावपूर्ण बिदाई दी। सभी ने पुनः आशीषमय सानिध्य की आशा व्यक्त की।
आचार्य सुन्दर सागर जी के प्रवचन ने चिंता एवं चिंतन के बीच के गहन आध्यात्मिक अंतर को स्पष्ट करते हुए मानव जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश प्रदान किए हैं, जो समकालीन तनावपूर्ण जीवन में मन की शांति और मोक्ष प्राप्ति के लिए अमूल्य सिद्ध होंगे।
महावीर सन्देश – जैन ओम पाटोदी