विदिशा। एनएमटी न्यूज़ एजेंसी।
श्री शीतलनाथ दिगंबर जैन बड़ा मंदिर, किले अंदर स्थित धर्मप्रेमी विदिशा नगर ने 7 दिवसीय जिन्देशना प्रथम जैनत्व बाल-युवा शिक्षण शिविर का समापन उत्साह, अनुशासन और आध्यात्मिक ऊर्जा के साथ संपन्न किया। अंतिम दिन भगवान के अभिषेक, प्रक्षाल और पूजन के उपरांत आयोजित हुई धर्म परीक्षा में 150 से अधिक बालकों व युवाओं ने भाग लेकर अपनी साधना का परिचय दिया।
बाल बोध से लेकर षडडाला तक दी गई परीक्षाएं
शिविर संयोजक प्रवक्ता शोभित जैन ने बताया कि परीक्षा बाल बोध 1, 2, 3 तथा छः डाला विषयों पर आधारित थी।
- 3 से 6 वर्ष की आयु के नन्हे प्रतिभागियों ने मौखिक परीक्षा दी।
- 7 वर्ष से ऊपर के बालकों, युवाओं एवं वयस्कों ने लिखित परीक्षा दी।
सभी प्रश्नपत्र 50 अंकों के निर्धारित थे।
समापन समारोह में विराग शास्त्री का प्रेरक उद्बोधन
सायंकालीन समापन समारोह में विशेष रूप से पधारे जिन्देशना समूह के संचालक विराग शास्त्री (जबलपुर) ने मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत की।
उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा:
“भारत के विभिन्न नगरों में धर्म की चेतना जगाने हेतु जिनदेशना समूह निरंतर शिक्षण शिविरों का आयोजन करता है। विदिशा का यह शिविर विशेष इसलिए रहा क्योंकि इसे युवाओं द्वारा पूरी लगन और परिश्रम से संचालित किया गया।”
उन्होंने यह भी कहा कि—
“वर्तमान में युवा पीढ़ी धर्म से विमुख होती जा रही है, ऐसे शिविरों के माध्यम से उनमें धार्मिक रुचि, नैतिकता और संस्कारों का बीजारोपण संभव है। यही जैन धर्म की परंपरा को सतत बनाए रखने का मार्ग है।”
समापन अवसर पर सभी बच्चों को धार्मिक किट प्रदान की गई और पुरस्कारों का वितरण कर उनके प्रयासों की सराहना की गई।
संगीतमय प्रस्तुतियों ने मोहा मन
शिविर में निखिल शास्त्री द्वारा प्रस्तुत संगीतमय आध्यात्मिक व पौराणिक कथाएं, जिनका डिजिटल प्रारूप, बच्चों और अभिभावकों द्वारा विशेष रूप से सराहा गया। उन्होंने कहा:
“विदिशा विद्वानों की नगरी रही है, इसे ‘मिनी सोनगढ़’ भी कहा जाता है। ऐसे शिविर हर वर्ष होना चाहिए।”
षट्खंडागम शिविर हेतु आमंत्रण
समापन सभा में जिनायतन, द्रोणगिरि से आए विद्यार्थी भी सम्मिलित हुए, जो आगामी षट्खंडागम शिविर (21 मई से 2 जून) हेतु विदिशा आमंत्रण देने पधारे थे। समाजजनों ने उनका सौहार्दपूर्वक स्वागत किया।
महावीर संदेश – शोभित जैन
“धर्म की नींव बचपन में ही रखी जाती है। जिनदेशना शिविर जैसे आयोजन बच्चों को आत्मबोध और आचार विचार से जोड़ने का सशक्त माध्यम हैं। समाज को ऐसे प्रयासों में निरंतर सहभागिता रखनी चाहिए।”